सुबह का समय था मैं सोफे पर बैठा अखबार के पन्ने पलट रहा था, तभी मेरे मोबाइल की घंटी बजी, मैंने देखा वह मेरे छोटे भाई का फ़ोन था।
"हेलो" मैंने फोन उठाते हुए कहा।
"एक खुश खबर है, रोहित को कनाडा का वीज़ा मिल गया है और वह छब्बीस तारीख को आगे की पढाई के लिए कनाडा जा रहा है।" सामने से सूरज ने कहा।
सुनते ही कुछ पल के लिए मैं बिलकुल चुप ही हो गया, समझ नहीं पा रहा था कि इस समाचार पर कैसे रियेक्ट करूँ ? लेकिन चूँकि सूरज ने मुझे यह समाचार बड़ी ही गर्मजोशी और उत्साह से सुनाया था इस लिए मेरा भी फ़र्ज़ बनता था कि मैं भी उसका उत्तर उसी गर्म जोशी और उत्साह से देता।
मैंने कहा "अरे, बहुत बहुत बधाई हो, मगर एकदम से अचानक यह सब कैसे हो गया ? तुमने पहले तो कभी बात नहीं की थी।"
"हाँ लकिन जबसे स्पर्श (मेरी छोटी बहन का लड़का ) कनाडा गया है तभी से उसकी भी यह इच्छा थी कि उसे भी आगे की पढाई के लिए कनाडा जाना है। इसके लिए वह लम्बे समय से कोशिश भी कर रहा था और फिर मैंने भी सोचा, वहां चला जाएगा तो उसका भविष्य बन जाएगा। बस अब जब सब कुछ तय हो गया तब मैं सभी को बता रहा हूँ। "
"हाँ यह तो सही है, मैं रोहित को बधाई देना चाहता हूँ, मेरी बात करवाओ रोहित से। "
"वह तो तभी से बहुत ही खुश है, अभी कहीं बाहर गया है, आने पर मैं बात करवा दूंगा।" सूरज ने कहा।
"चलो ठीक है, मैं शाम को खुद ही आऊंगा उसे बधाई देने।"
बात खत्म होने के बाद मैं काफी देर सोचता रहा। सूरज ने मुझे कहा था कि "उसकी इच्छा थी कनाडा जा कर आगे की पढाई करने की, और फिर मैंने भी सोचा, वहां चला जाएगा तो उसका भविष्य बन जाएगा।" मैं सोचने लगा "माँ बा अपनी औलाद के लिए क्या कुछ करने को और सहने को तैयार हो जाते हैं। यहाँ तक कि अपने जिगर के टुकड़े को अपने से इतनी दूर भेजने को भी तैयार हो जाते हैं। एक अनजान देश, एक अनजान शहर में जहाँ उसका अपना कोई भी नहीं। क्यों ? अपने बच्चे का सुन्दर भविष्य बनाने के लिए।
मेरा भाई व्यवसाय करता है और भाभी एक स्कूल में शिक्षिका हैं। उनकी एक बेटी भी है। मैं समझ सकता हूँ कि अपने इकलौते बेटे को अपने से इतनी दूर भेजने का फैंसला इतना आसान नहीं रहा होगा उनके लिए और उनके लिए ही क्यों किसी भी माँ बाप के लिए यह फैंसला बड़ा ही मुश्किल हो सकता है। लकिन अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए वह सब कुछ सहने को तैयार हो जाते हैं। बेटे को बाहर से आने में थोड़ी सी भी अगर देरी हो जाए तो चिंता की लकीरें खिंच जाती हैं माँ बाप के माथे पर , मगर अब कौन देखेगा, वह कब लौटा ? अगर बच्चे ने खाना ठीक से ना खाया हो तो माता पिता को चिंता हो जाती है, लेकिन अब कौन देखेगा उसने खाना भी ठीक से खाया यां नहीं ?
यह हमारे परिवार में से दूसरा लड़का था जो कनाडा जा रहा था। इससे पहले मेरी छोटी बहन नीता ने भी अपने इकलौते लड़के स्पर्श को अपने से दूर कनाडा भेजा था, एक साल हो गया है उसको गए हुए। वह भी बहुत ही खुश थी जब उसने हम सबको यह खबर सुनाई थी। मगर मैंने देखे थे उसकी आँखों के वह आंसू, जो उसकी आँखों से बह रहे थे, जब स्पर्श उसे गले लग कर सिक्योरिटी चेकिंग के लिए अंदर चला गया था। ये आंसू इस लिए थे क्यूंकि अब वह नहीं जानती थी कि अपने बेटे को कब देख पाएगी ? एक बहन नहीं जानती थी कि अब वह कब खुद अपने भाई की कलाई पर राखी बाँध पाएगी और एक पिता नहीं जानता था कि अब कब उसका बेटा उसके बराबर अाकर खड़ा होगा ?
उस समय उनके दिल का दर्द मैं भली भांति महसूस कर रहा था। एक माँ की इच्छा थी कि उसका बेटा फिर एकबार सिक्योरिटी चेकिंग से बाहर आ जाए और वह उसको फिर एक बार जी भर कर देख ले। बहन के आंसू रुक नहीं रहे थे।
तब मैं उन्हें देख कर यही सोचता रहा था कि यह कितने ही मुश्किल क्षण हैं एक माँ बाप और एक बहन के लिए, उनकी आँखों के आगे से उनका बेटा, भाई ओझल हो गया, पता नहीं कब तक के लिए ? हालाँकि यह निर्णय उनका खुद का था और वह भी क्यों ? अपने बच्चे के सुन्दर भविष्य के लिए उन्होंने अपने दिल को पत्थर कर लिया था। लेकिन पत्थर कभी दिल नहीं हो सकता और दिल कभी पथ्थर नहीं हो सकता , बरस ही पड़ता है।
आज फिर एक माँ बाप ने वही निर्णय लिया था, अपने बेटे के सुनहरे भविष्य के लिए। मैं जानता था आज खुश दिखने वाले माँ, बाप, बहन एक समय पर कमज़ोर पड़ जाएंंगे।
मैं जब शाम को रोहित से जाकर मिला तो वह बहुत ही खुश नज़र आ रहा था।
"बस दस दिन बाकी हैं कनाडा जाने में।" उसकी आँखों से और उसके बोलने से उसकी ख़ुशी साफ़ झलक रही थी।
मैंने उसकी पीठ थपथपाते हुए उसे आशीर्वाद दिया मगर दिल भारी था आँखे नाम थीं।
मैं जानता था यह दस दिन दस घंटों की तरह गुज़र जाएंगे, क्यूंकि उसको और उसके माता पिता को अभी बहुत सी तैयारियां करनी थीं।
सात दिन यूँही पंख लगाकर उड़ गए। अब केवल तीन दिन बाकी बचे थे, मेरी एक बहन है उसका लड़का सचिन कॉलेज से छुट्टियां लेकर आ गया था, वह रोहित के साथ तीन दिन गुज़ारना चाहता था। मैं जानता था वह भाई तो थे ही मगर उससे भी ज़्यादा अच्छे दोस्त थे।
जाने के एक दिन पहले तक रोहित अपने कॉलेज के दोस्तों से मिलता रहा। अब उसके चेहरे पर सबसे बिछड़ने का दर्द साफ़ झलकने लगा था, मैं यह जानता हूँ कि कोई भी बच्चा अपने परिवार से अलग होकर नहीं रहना चाहता, सचिन भी मायूस दिखने लगा था।
कहीं ख़ुशी थी कि उसका एक भाई आ रहा है तो कहीं बिछड़ने का दर्द भी था।
आखिर वह दिन भी आ ही गया जिसकी तैयारियां न जाने कितने ही दिनों से चल रहीं थीं।आज रोहित घर से बिदा होने वाला था, घर से निकलने से पहले एक बहन शुभ शगुन के तौर पर अपने भाई को भीगी आँखों से दही और चीनी खिला रही थी। एक माँ की आँखों से रह रह कर आंसू छलक जाते थे और एक पिता सभी से छिप छिप कर रो रहा था। रोहित मुंह से कुछ बोल तो नहीं रहा था मगर उसकी आँखे बहुत कुछ बयां कर रहीं थीं, लगा जैसे कहना चाह रहा हो :
"मैं कभी बतलाता नहीं, पर अँधेरे से डरता हूँ मैं माँ,
यूँ तो मैं दिखलाता नहीं, तेरी परवाह करता हूँ मैं माँ,
तुझे सब है पता मेरी मां,
भीड़ में यूँ ना छोड़ो मुझे, लौट के घर भी आ ना पाऊं माँ
भेज ना इतना दूर मुझको तू, याद भी तुझको आना पाऊं माँ,
क्या इतना बुरा हूँ मैं माँ"
एयरपोर्ट पहुंच कर फिर वही क्षण मैं देख रहा था, सभी रोहित के साथ एक फोटो खिचवाना चाहते थे, सभी के मोबाइल फोन के कैमरा ओन थे और उस क्षण को कैद कर लेना चाहते थे। रोहित की फ्लाइट की घोषणा हो चुकी थी और अब उसे सिक्योरिटी चेकिंग के लिए अंदर जाना था, फिर एक बेटा, एक भाई , एक भतीजा, एक भांजा और एक दोस्त आँखों से ओझल होने वाला था, पता नहीं कितने महीनों के लिए ? सभी की आँखे नम थीं, सभी उसके चहरे को अपनी आँखों में बसा लेना चाहते थे, सचिन उदास था क्यूंकि एक और भाई उससे बिछड़ रहा था।
रोहित के चलने से पहले स्पर्श की माँ ने कहा कहा "मेरी तरफ से स्पर्श को ज़ोर से गले लगाना " एक माँ का दर्द और अपने बेटे को गले लगाने की लालसा साफ़ झलक रही थी। बहन ने कहा "स्पर्श को मेरी तरफ से चुटकी भरना " एक बहन का प्यार और अपने भाई के प्रति शरारत साफ़ थी उसमें और हो भी क्यों ना स्पर्श से बिछड़े उन्हें एक वर्ष से भी ज़्यादा का समय हो गया था।
कुछ ही देर में रोहित अंदर चला गया, जाते जाते उसने आगे पहुँच कर पीछे मुड़ते हुए सभी को हाथ हिला कर बाय कहा,
लगा जैसे वह कह रहा था
"कल भी सूरज निकलेगा,
कल भी पंछी गाएंगे,
सब तुमको नज़र आएंगे
पर हम ना नज़र आएंगे,
आँखों में बसा लेना हमको,
सिने में छुपा लेना हमको
अब हम तो हुए परदेसी "
और उसका चेहरा पालक झपकते ही आँखों से ओझल हो गया।
रोहित के अंदर चले जाने के बाद अब इच्छा थी उस प्लेन की एक झलक पाने की, उसको उड़ता हुआ देखने की, और मैं समझता हूँ उससे भी ज़्यादा फिर एक बार उसे देखने की, क्यूंकि दिल तो अभी भी उसे देखना चाहता था।
मैं सोचता हूँ यह दिल भी कितना चंचल होता है, जिस माँ बाप ने खुद ही अपने बेटे को इतनी दूर भेजने का फैंसला लिया, उनका दिल तो आज भी चाहता है कि वह उनकी नज़रों के सामने रहे, यह आँखें हमेशां उसे देखती रहें।
मेरे मन में कई सवाल उठते हैं :
"तो फिर क्यों एक माँ बाप को इतना कड़ा फैंसला लेना पड़ता है ?"
"क्यों अपनी आँख के तारे को अपनी ही आँखों से दूर भेजना पड़ता है ?"
"कब तक हमारे बच्चे हायर स्टडीज़ के लिए विदेशों में जाते रहेंगे ?" "कब तक माँ बाप अपने बच्चों का उज्जवल भविष्य बनाने के लिए उसे विदेश भेजते रहेंगे ?"
"क्यों हमारे देश में मेहनत के अनुरूप पैसा नहीं दिया जाता ?"
"कब तक पैसा कमाने की लालसा में बच्चे अपने माँ बाप से दूर होते रहेंगे ?"
"कब तक इस देश का भविष्य कहे जाने वाले यह नवयुवक खुद का भविष्य बनाने के लिए विदेशों में जाते रहेंगे ?"
"क्या इसके लिए ज़िम्मेदार हमारा लचर सिस्टम है ?"
"कब तक हमारे हुक्मरान इस बात को समझेंगे ?"
सवाल कई हैं मगर मैं जानता हूँ इसका हल किसी के पास नहीं और जबतक हमारा देश इन बातों का हल नहीं ढूंढ लेता तबतक माँ बाप अपने बच्चे के सुन्दर भविष्य के लिए उन्हें इसी तरह अपने से दूर विदेशों में भेजते रहेंगे।
प्लेन आँखों के आगे से गुज़रा और अपने बेटे की एक झलक को तरसती आँखें निराश हो गई। कुछ पलों में प्लेन हवा में उड़ने लगा,लेकिन मैं समझता हूँ यह उड़ान थी न जाने कितने माँ बाप की उम्मीदों की, यह उड़ान थी ना जाने कितनी बहनों की दुआओं की और यह उड़ान थी ना जाने कितने बच्चों के सपनों की।
Romy Kapoor (Kapildev)
1 comment:
Very touching story!
Made my eyes wet..
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