Wednesday, May 27, 2015

सुकून







रात के अँधेरे को चीरती ऑटो रिक्शा खाली सड़क पर सरपट भागी चली जा रही थी। इतनी हवा के बावजूद भी ड्राइवर के माथे पर पसीने की बूंदे साफ़ चमक रहीं थीं, चेहरे पर हवाइयां उड़ रहीं थीं। वह जल्द से जल्द अपने घर पहुँच जाना चाहता था, इसीलिए अपने ऑटो रिक्शा को वह पूरी स्पीड में भगाए जा रहा था।  उसके दिल की धड़कने तेज़ चल रहीं थीं और दिल में एक डर भी था कि कहीं कोई पुलिस वाला किसी वजह से रोक ना ले  .गनीमत रही कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
अपने मोहल्ले में पहुँच कर उसने माथे पर आईं पसिमे की बूंदों को पोंछकर  अपनी ऑटोरिक्क्षा को अपने घर की तरफ मोड़ा ही था कि सामने से आते हुए उसके एक मित्र ने हाथ दे कर रोकते हुए पूछा "अरे करन क्या बात है आज जल्दी आ गया ? ठीक तो है ना ? "
"हाँ बस थोड़ा ठीक नहीं लग रहा था तो वापस आ गया। " करन ने उत्तर दिया।
"यार कोई काम पड़े तो मुझे फ़ोन कर के बुला लेना। "
"हाँ हाँ ज़रूर , चल यार कल मिलते हैं। " कहते हुए उसने अपनी ऑटो रिक्शा आगे बढ़ा दी।

घर पहुँच कर उसने ऑटो रिक्शा को साइड में लगाया और अपनी पीछे वाली सीट की आड़ में रखे बैग को निकाला  फिर अपने आस पास नज़रें घुमायीं और आश्वस्त होने के बाद बैग लेकर जल्दी से अपनी खोली में दाखिल हो गया।
"अरे क्या बात है आप आज इतनी जल्दी वापस आ गए ?" करन को  देखते ही उसकी पत्नी ने बड़े ही आश्चर्य से पूछा। और ये बैग किसका है ? क्या है इसमें ?"
"अरे थोड़ा धीरे बोल कोई सुन लेगा !" अपनी पत्नी के मुँह पर हाथ रखते हुए करन ने कहा "यहाँ मेरे पास बैठ और बड़े ध्यान से सुन" अपनी आवाज़ को और धीमी करते हुए करन ने कहा और आगे बोला "इस बैग में 50 लाख रुपये हैं। " करन ने इधर उधर देखते हुए अपनी बात पूरी की।
"पचास लाख ?" करन की पत्नी राधा के तो जैसे होश ही उड़ गए, आँखे फटी की फटी रह गईं। वह चिल्ला पड़ी।
"ऐ तू मरवाएगी कह रहा हूँ धीरे बोल, चिल्ला मत, पर तू सुनती ही नहीं है।"
"मगर इतना पैसा आप लाये कहाँ  से ? किसी के यहाँ चोरी...........।" घबराई सी राधा ने पूछा।
"नहीं  नहीं। " अपनी पत्नी को बीच में ही टोकते  हुए उसने कहा
" एक पैसेंजर बैठा था मेरी अॉटो रिक्शा में उतरते समय वह जल्दी में सिर्फ अपने हाथ वाला बैग लेकर उतर गया और ऑटो रिक्शा में रखा बैग उठाना ही भूल गया शायद बहुत घबराया हुआ था। पहले तो मैंने भी ध्यान नहीं दिया, मगर ऑटो चलते हुए मेरी नज़र जब मिरर में से पीछे गयी तो मैंने देखा कि पीछे एक बैग पड़ा था।  मैंने अँधेरे में एक कोने में ऑटो को रोका और बैग को खोल कर देखा तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं, उसमे हज़ार हज़ार की गड्डियां थीं।  मैंने तुरंत उन गड्डियों को गिना तो पाया कि वह पूरे पचास लाख रुपये थे।"
करन कुछ देर तक सांस लेने के लिए रुका और फिर आगे बोलना शुरू किया "इतने रुपये देख कर मैं पूरा का पूरा पसीने से भीग गया , पहले तो सोचा कि जाकर उसे यह रुपये लौटा दूँ मगर फिर अगले ही पल मुझे तुम्हारा और बच्चों का ख्याल आया, सोचा कि आखिर कब तक युही ऑटो रिक्शा चला कर इस तरह की ज़िन्दगी गुजारेंगे। " करन चुप हो गया .
मगर यह पाप है , मैं तो कहती हूँ की आप उसका रूपया लौटा आओ, इसी में भलाई है।" उसकी पत्नी राधा ने कहा
"पागलो वाली बातें मत कर, हम यह रुपया लेकर कहीं दुसरे शहर में चले जायेंगे और अपनी नयी ज़िन्दगी शुरू करेंगे, बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाएंगे।  मैं यह पैसे लौटाने नहीं जाऊंगा, और तू भी अपनी ज़बान बंद रखना , किसी से कुछ कहना नहीं , हम जल्दी ही यह शहर छोड़ देंगे।" करन की आवाज़ में थोड़ा गुस्सा था।

दोनों में इस बात पर काफी देर तक बहस बाज़ी होती रही। राधा करन पर  ज़ोर डालती रही पैसे लौटा आने को मगर कारन टस से मास नहीं हुआ।  आखिर दोनों चुप हो गए।
करन ने नोटों वाला बैग हाथों में दबाया और लेट गया।
लेट तो राधा भी गयी थी मगर उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ झलक रहीं थीं।
इतने पैसे पा कर बेचैन तो करन  भी था, इतने नोट एक साथ उसने अपनी ज़िंदगी में पहली बार ही देखे थे। नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी, तरह तरह के सपने देख रहा था। कभी अपने आप को कार में बैठा देख रहा था, तो कभी खुद को अपनी पत्नी और बच्चों के साथ किसी हिल स्टेशन पर, वह अपने आप को सूट बूट में किसी बिज़नेसमैन के रूप में भी देख रहा था।

करवटें बदलते रहे करन और राधा, दोनों ही, मगर दोनों ही को नींद न आने के कारन अलग अलग थे। करन जब भी करवट बदलता तो नोटों से भरा बैग घुमा कर अपनी तरफ कर लेता और ज़ोर से कस कर पकड़ लेता।
सुबह उठे तो दोनों ही के बीच में एक तनाव सा था। राधा करन से बात भी नहीं कर रही थी।

नहाधो कर  राधा ने चाय बनाकर रात की पड़ी बासी रोटी अपने बच्चों  को और करन को नाश्ते में दी। नाश्ता कर के करन नोटों के बैग के पास बैठा था कि राधा ने पूछा "आज ना जाओगे काम पर ?"
"नहीं इत्ता पैसा घर में पड़ा है, तू अकेली तो संभाल भी न पायेगी , और अब मुझे ऑटोरिक्शा चलाने की क्या ज़रुरत है ? करन ने उत्तर दिया
"मैं तो अब भी कहती हूँ ये पैसा वापस लौटा आओ। " राधा बोली
"देख मैंने तुझे पहले भी कहा था पागल मत बन , पचास लाख बहुत होता है ज़िन्दगी सवंर जाती है " करन बोला। 
"या बिगड़ जाती है। " राधा ने कहा
"क्या मतलब ?" चौंकते हुए करन ने पूछा।
"जिनके रुपये खोये हैं उनकी क्या हालत हो रही होगी ? पता नहीं वो रूपये वह किस काम के लिए ले जा रहे थे ! क्या उनकी ज़िन्दगी के बारे में सोचा ?
करन निरुत्तर सा राधा को देखता रहा। कुछ देर रुक कर फिर बोला "तू कुछ भी बोल मैं ये रुपये लौटाने वाला नहीं। "
राधा चुप हो गयी।
दिन यूंही बीत गया। करन घर से बहार नहीं निकला राधा और करन में भी कोई खास बात नहि हुइ।
करन नोटों के भरे बैग को अपने से अलग नहीं होने देता था। इसी वजह से वह न तो रात को ठीक से सो पाता था और नाही दिन में। वह अब काफी थका थका सा लग रहा था कई दिनों से उसने ऑटो भी नहीं चलाया था , करन न तो बहार निकलता था नहीं काम पर जाता था। एक दो बार तो उसका मित्र भी उससे मिलने आया मगर उसे भी उसने बाहर से ही टरका दिया था। राधा परेशान थी, वह ना तो करन से ठीक तरह से बात करती थी नाही उसके पास ज़्यादा बैठती थी। जब कभी भी अगर थोड़ी बहुत बात करती भी थी तो सिर्फ अपने पति को समझाने के लिए। करन ने एक दो बार उसे यह शहर छोड़ कर दुसरे शहर में जाके बसने को भी कहा मगर राधा बात को सुनी अनसुनी  कर टाल देती। शायद इसी उम्मीद में कि करन को अपनी गलती का एहसास हो जाए और वह इन पैसों को लौटा दे।

सुबह का समय था।  करन युही बैठा हुआ था अध खुली अध बंद आँखों में। बिना नींद के उसकी आँखे सूजी सूजी सी लग रहीं थीं। उसके मन में तरह तरह के विचार आ रहे थे। वह सोच रहा था कहीं उसने ये पैसे ना लौटा कर कोई गलती तो नहीं की ? इतने सारे पैसों से वह करेगा क्या ? क्या उसकी पत्नी उसे सही सलाह दे रही थी ? जब   से पैसे आये हैं तभी से उसका सुख और चैन गायब हो गया है। क्या इस तरह के डर के साये में वह कभी भी चैन से रह पायेगा ? कभी इतने पैसों के साथ पुलिस ने पकड़ लिया तो ?  उसके बच्चों की और उसकी पत्नी की ज़िन्दगी बर्बाद हो जाएगी।

इसी उधेड़ बुन में वह काफी देर तक बैठा सोचता रहा। कभी एक ख्याल आता तो कभी दूसरा। काफी देरतक वह इन पैसों के फायदे और नुकसान के बारे में सोचता रहा। वह उस परिवार के बारे में भी सोच रहा था जिनके पैसे खोये थे। क्या बीत रही होगी उनपर ? कहीं उन्होंने पैसे खोने की फरियाद पुलिस में तो नहीं कर दी।
इसी तरह वह घंटो सोचता रहा और फिर आखिर में वह एक निर्णय पर पहुंचा।  उसने अपनी पत्नी की तरफ देखा फिर अपने बच्चों की तरफ, मासूमों को तो पता ही नहीं था कि हो क्या रहा है ? उसने फिर अपनी पत्नी की तरफ देखा और बोला "राधा यहाँ आओ मेरे पास बैठो मैं तुमसे ज़रूरी बात करना चाहता हूँ। " राधा जब करन के पास आकर बैठी तो उसका हाथ अपने हाथ में लेकर धीरे से बोला 
" तुम जीत गई राधा " राधा ने चौंक कर अपने पति की तरफ देखा और बोली "क्या मतलब ?"
"राधा मैंने फैसला किया है कि मैं अभी जाकर यह पैसे लौटा आऊंगा। "
"सच ?" राधा के चेहरे पर ख़ुशी की लहर दौड़ गयी।
"हाँ राधा , मैं अभी यह पैसे लौटाने जा रहा हूँ और तुम चल रही हो मेरे साथ  " राधा का हाथ अपने हाथों से  दबाते हुए बोला और तपाक से खड़ा हो गया।

उसने नोटों का भरा बैग उठाया और अपनी ऑटो के पीछे रखा, राधा को पीछे बैठाया और चल दिया वही जहा उस रात उस पैसेंजर को उसने उतारा था। राधा बहुत खुश थी।

वह एक कोठी थी , गेट पर पहुँच कर उसने ऑटो रोका , उतरकर गेट खोला व ऑटो को लेकर सीधा अंदर पोर्च में जाकर ऑटो को खड़ा कर दिया।

मुख्य द्वार पर दस्तक दी कुछ ही पलों में वह दरवाज़ा खुला और वही आदमी करन के सामने खड़ा था जो उस रात बैग भूल गया था। उसने एक नज़र करन की तरफ डाली तो एक नज़र उसकी पत्नी पर और फिर उस ऑटो को देखने लगा।
"कहिये कौन हैं आप ?" उसकी आवाज़ में एक उत्सुकता भी थी।
"साब मैं वही हूँ जिसके ऑटो में आप पैसों से भरा बैग भूल गए थे। " करन बोला।
"क्या ? कहाँ हैं वह रुपये ? "
करन ऑटो की तरफ गया और बैग उस व्यक्ति के हाथ में थमाता हुआ बोला "साब ये रहे आपके रपये, आप चेक कर लीजिये "

उस व्यकि ने तुरंत ही बैग खोला और उसमे रखे नोटों पर अपनी नज़र दौड़ाते हुए करन की तरफ देख कर बोला "तुम्हारा लाख लाख शुक्रिया, तुम्हे नहीं मालूम, ये रुपये मेरे लिए कितने ज़रूरी थे ? तुमने ये लौटा कर मुझ पर बहुत बड़ा एहसान किया है, तुम मांगो मैं तुम्हे उतना इनाम दूंगा। "
"नहीं साब मुझे कुछ नहीं चाहिए, जबसे ये पैसे मेरे घर आये तबसे मेरा सुख चैन गायब हो गया , मेरी पत्नी मुझसे दूर हो गई मैं अपने परिवार और मित्रों से दूर हो गया।  एक बोझ जो मेरे सीने पर था वह उतर गया है ,मैं अपने आप को हल्का महसूस कर रहा हूँ। "

करन बिना कोई बात सुने अपनी पत्नी का हाथ थामे अपनी ऑटो की तरफ बढ़ गया राधा को पीछे बिठा कर ऑटो स्टार्ट कर के चल दिया। 

ऑटो सड़क पर सरपट दौड़ा जा रहा था और करन मन ही मन मुस्कुराता हुआ सोच रहा था "सचमुच कितना सुकून होता है सच्चाई में। "

ROMY KAPOOR 

1 comment:

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