Wednesday, August 20, 2014

गुनहगार - A Short Story


"अरे अनु, अभी तक तैयार नहीं हुईं तुम ? देखो, साढ़ेनौ बज गए हैं    और पौने दस बजे का शो है !" आकाश ने ज़ोर से आवाज़ लगाते हुए अनु से कहा तो अंदर से अनु की आवाज़ आई "आई, बस दो मिनट" .

आकाश और अनु की शादी की पांचवीं सालगिरह थी आज, इसी को सेलिब्रेट करने के लिए दोनों आज रात के शो में फिल्म देखने जा रहे थे। शादी को पांच साल हो गए थे मगर दोनों के यहाँ कोई संतान नहीं हुई थी। कितनी ही जगह मन्नते मान चुके थे, जहाँ कोई कहता चले जाते, जैसे कोई कहता उपाय करते, मगर कोई फायदा नहीं हुआ था।

अनु जब तैयार होने में काफ़ी देर लगा रही थी तो आकाश उठ कर दूसरे कमरे में गया और अनु को देख कर बोला "हम रात के शो में फिल्म देखने जा रहे हैं दिन के शो में नहीं जो इतनी सजधज रही हो, रात में तुम्हें कोई नहीं देखेगा। "
"कैसी बातें करते हो ? मैं क्या लोगों के लिए तैयार होती हूँ ?" अनु ने नाराज़गी जताते हुए कहा और साड़ी का पल्लू ठीक करते हुए आकाश के पास आकर खड़ी होते हुए ऐसे देखने लगी जैसे आकश से कुछ पूछ रही हो।
"अरे बाबा बहुत ही सुन्दर लग रही हो, अब जल्दी चलो आधी फिल्म देखनी है क्या ?"
दोनों ही तेज़ी से बहार की और बढ़ गए, ताला अनु के हाथ में थमाते हुए आकाश ने कहा "तुम ठीक से लॉक लगाओ तबतक मैं गाडी निकालता हूँ" कहते हुए आकाश आगे बढ़ गया।
"चलो अनु जल्दी करो " गाड़ी को अनु के पास लाते हुए आकाश  ने कहा।  
अनु के गाड़ी में बैठते ही आकाश ने गाडी को आगे बढ़ा दिया, गली का मोड़ काट कर गाड़ी को मैन सड़क पर घुमाते हुए हुए आकाश ने अपनी घड़ी की तरफ देखते हुए कहा "अनु बहुत लेट कर दिया तुमने, यहाँ से करीब बीस किलोमीटर की दूरी पर है सिनेमा हॉल, पहुँचते पहुँचते तो लगता है फिल्म शुरू भी हो जाएगी, लोग कहते हैं कि अगर शुरू से फिल्म नहीं देखि तो कहानी समझ में ही नहीं आएगी।"
अनु चुप थी, वह कार से बहार देखते हुए कुछ देर बाद दबी सी आवाज़ में बोली "आकाश कितना सूना रास्ता है, हमारी कार के इलावा और कोई वाहन दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहा, ऐसे में तुम रात के शो की टिकट ले आये, मुझे तो बहुत डर लग रहा है। "
"अरे डरो नहीं मैं हूँ न तुम्हारे साथ, और फिर फिल्म देखने का मज़ा तो रात के शो में ही आता है।" आकाश ने अनु की आवाज़ में छिपे डर को भांपते हुए कहा और अपनी गाड़ी को बाईं तरफ मोड़ दिया। गाड़ी सरपट सड़क पर दौड़ी चली जा रही थी, तभी अनु ने पूछा 
"अभी कितना दूर है ?"
"बस वह सामने रौशनी दिख रही है ना, वही है " आकाश ने उत्तर दिया। 

गाड़ी को पार्क करके दोनों ही तेज़ी से सिनेमा हॉल में चले गए, फिल्म शुरू हो चुकी थी, अपनी सीट पर बैठते हुए आकाश ने अनु की तरफ देखते हुए कहा "देखाना ! करीब पंद्रह मिनट की फिल्म निकल चुकी है।"
लेकिन अनु चुप थी, किसी गुनहगार की तरह। 
फिल्म के बीच बीच में आकाश कभी कभी रोमांटिक होता हुआ कुछ बचकानी हरकत कर देता था, मगर जब अनु उसका हाथ झटक कर आँखें निकाल कर देखती तो वह एक आज्ञाकारी बालक की तरह बैठ जाता था।

फिल्म करीब पौने एक बजे खत्म हुई, हॉल से बाहर निकलते हुए आकाश ने अनु से कहा "देखाना, मैंने तुमसे कहा था न कि फिल्म अगर शुरू से नहीं देखी तो कहानी समझ में ही नहीं आएगी ? मुझे तो लगता है फिल्म एक बार फिर देखनी पड़ेगी "
"हां हां देखलेना मगर अभी तो यहां से जल्दी से निकलने की करो, ये सब गाड़ियां निकल रहीं हैं तो हम भी इन्हीं के साथ ही निकल चलें।" अनु ने कहा
कई गाड़ियां निकल रहीं थीं, आकाश भी उन्हीं गाड़ियों के साथ अपनी स्पीड बनाये हुए था, अभी करीब पांच छे किलोमीटर ही आगे आये थे की आकाश की गाडी अचानक डगमगाने लगी। डर के मारे अनु ने आकाश की तरफ देखा, तबतक आकाश ब्रेक मारके गाडी को कंट्रोल कर चूका था, गाडी को बंद करके नीचे उतर कर उसने टायर चैक किये और अनु के पास आकर बोला "टायर पंक्चर हो गया है, तुम यहीं  गाडी में ही बैठो मैं अभी व्हील बदल देता हूँ, करीब पंद्रह बीस मिनट लगेंगे "
"तब तक तो सारी गाड़ियां निकल जाएंगी ?" अनु ने घबराई सी आवाज़ में पूछा।
"तुम घबराओ नहीं बस थोड़ी देर लगेगी " कहता हुआ आकाश अपने काम में लग गया।

अनु का दिल ज़ोरों से धड़क रहा था, उसने देखा धीरे धीरे उनके साथ वाली सभी गाड़ियां निकल चुकीं थीं, अब इस सुनसान सड़क पर बस अँधेरा था और उनकी गाडी थी। अँधेरा होने की वज़ह से आकाश को भी दिक्कत आ रही थी। सड़क पर गहरा सन्नाटा था, तभी अनु ने देखा सामने से कोई कार चली आ रही है, कार की गति कुछ दुरी पर ही कम हो गयी व कुछ ही पलों में वह कार उनकी कार की बराबरी पर आकर खड़ी हो गयी। अनु ने नज़रें घुमा कर देखा, ड्राइविंग सीट पर करीब ३५ वर्षीय युवक बैठा हुआ था, उसकी बगल में भी उसीका हमउम्र व्यक्ति था , पीछे की सीट पर भी दो व्यक्ति बैठे हुए थे मगर अनु ने उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। तभी आगे बैठे युवक ने अनु की तरफ देखते हुए पूछा "क्या हम आपकी कोई मदद कर सकते हैं।" 
अनु की साँसे तेज़ चलने लगीं, उसने उनकी बात के जवाब में अपना मुंह फेर लिया।

कुछ देर वह लोग कार में बैठे कुछ खुसुर फुसुर करते रहे, फिर वे चारों ही कार में से बहार आये और उनमें से एक अनु वाली साइड पर आकर खड़ा हो गया, दूसरा कार की  दूसरी साइड पर खड़ा हो गया, और वह दोनों में से एक कार के आगे और एक आकाश के पास जाकर बोला "क्या हम आपकी कुछ मदद कर सकते हैं ?" आकाश ने नज़रें उठा कर उस व्यक्ति की तरफ देखा और बोला नहीं बस अब सिर्फ नटे ही टाइट करनी हैं, शुक्रिया। "
"तो फिर आप हमारी मदद कर दीजिये " वह फिर बोला
"हां हां बोलिए ?" आकाश ने वहीँ बैठे हुए ही पूछा।
"आपकी बीवी बड़ी खूबसूरत है......" कहते हुए उसने आकाश को गर्दन से दबोच लिया। तबतक कार की अगलबगल खड़े दो युवक कार में समा चुके थे, अनु ने चीखने की कोशिश की मगर उनमे से एक ने अनु का मुह बंद कर दिया। आकाश उन दोनों के चंगुल से छूटने की बेतहाशा कोशिश कर रहा था, उसने चिल्लाने की भी कोशिश की मगर वह कामयाब नहीं हो सका, और फिर दरिंदगी का वह खेल आकाश की आँखों के सामने चलता रहा, उसने शर्म के मारे अपनी नज़रें झुकाली, अनु छटपटाती रही, चिल्लाने की कोशिश करती रही मगर कोई फायदा नहीं हुआ, पंछी फड़फड़ा रहा था और दरिंदे अपना खेल खेल रहे थे। पूरा एक घंटा चला वह दरिंदगी का खेल और उसके बाद चारों ही अपनी कार में फरार हो गए। 
आकश किसी तरह व्हील की नटे कस कर कार का दरवाज़ा खोल कर ड्राइविंग सीट पर आकर बैठ गया, उसने नज़रें घुमा कर पीछे की सीट पर देखा तो पाया अनु अपनी साड़ी से अपने बदन को ढकने की कोशिश कर रही थी, उसके बाल बिखरे हुए थे, और उसकी आँखों में आंसू थे, दोनों की नज़रें मिलीं और दोनों ही की नज़रें शर्म के मारे झुक गईं, मगर ना तो आकाश अनु के पास गया ना ही उसने उसके आंसू पोंछे।  

घर पहुँच कर अनु अपने कमरे में चली गई, और आकाश वहीँ लिविंग रूम में ही सोफे पर धप्प से बैठ गया। 
अनु अपने कपड़े बदल कर वहीँ बिस्तर पर बैठ गई, उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे, वह दहाड़ें  मार कर रोना चाहती थी, तभी आकाश ने कमरे में प्रवेश किया और अनु की तरफ नज़रें कर के धीरे से बोला 
"मैं पुलिस स्टेशन फोन लगा रहा हूँ, तुम्हे बात करनी होगी " .
"नहीं पुलिस स्टेशन फोन मत लगाना, पुलिस को इन्फॉर्म करने से क्या होगा ? वह लोग तो अबतक कहीं के कहीं पहुँच चुके होंगे, पुलिस मुझसे तरह तरह के सवाल पूछेगी 'रेप कितने लोगों ने किया ? कैसे किया ? रपे करते समय तुम्हारे कपड़े........कुछ देर रुकने के बाद अनु फिर बोली "मामला उछलेगा, प्रेस वाले आएंगे, न्यूज़ चैनल वाले आएंगे और सभी अपने अपने तरीके से सवाल पूछेंगे, अड़ोस पड़ोस ,मोहल्ले वाले, यहां तक कि सारा शहर जान जाएगा, तुम और मैं किस किस को जवाब देते फिरेंगे ? क्या मैं मोहल्ले में यां बाजार में निकल पाऊँगी ? सभी की नज़रें मुझ पर गढ़ी होंगी, सभी मुझसे कोई ना कोई सवाल करना चाहेंगे, किस किस को जवाब देती रहूंगी ? क्या तुम अपने ऑफिस में लोगों के चुभने वाले सवालों का जवाब दे पाओगे ?"
"मगर इस तरह हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना भी तो बुझदिली होगी" आकाश ने कहा
"प्लीज, मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ, मैं ज़िन्दगी के उस दौर से गुज़री हूँ जहां हर औरत सिर्फ और सिर्फ मौत ही चाहेगी। जिस औरत की इज़्ज़त उसीके पति के सामने लूटी गई हो और ………।  "कहतेकहते  वह फूट फूट कर रोने लगी, यूँ ही रोते रोते बोली "मुझे और ज़लील मत कीजिये कि मैं अपना अस्तित्व ही भूल जाऊं।"
आकाश चुप हो गया, वह असमंजस में था मगर फिर उसने भी सोचा कि 'दुनिया का सामना करना उसके लिए तो मुश्किल होगा ही मगर अनु के लिए तो और भी ज़्यादा मुश्किल हो जाएगा।'

रात दोनों की ही बड़ी मुश्किल से गुज़री, दोनों ही सारी रात करवटें बदलते रहे, रह रह कर अनु की सिसकियों की आवाज़ें आकाश के कानों में पड़ रहीं थीं मगर ना तो आकाश ने अनु की तरफ देखा और ना ही अनु आकाश से नज़रें मिला पाई।

सुबह उठ कर आकाश अपने ऑफिस के लिए तैयार हो रहा था, मगर दोनों ही एक दूसरे से कतराते रहे,एक दूसरे का सामना करने से बचते रहे। नाश्ते की टेबल पर आकाश आकर बैठा तब भी अनु दुसरे कमरे में ही बैठी रही, आकाश भी नाश्ते की टेबल पर आकर बैठा ज़रूर मगर नाश्ता किये बिना ही ऑफिस चला गया। 
ऑफिस में भी पूरा दिन आकाश आज गुमसुम सा बैठा रहा, उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था, रह रह कर रात की सारी घटना और उन चारों के चेहरे उसकी आँखों के सामने घूमते रहे और कार के अंदर की वो आवाज़ें आकाश के कानों से टकरा कर उसे विचलित कर रहीं थीं, गुस्से के मारे रह रह कर उसकी मुट्ठियाँ भींच जातीं थीं। 

वैसे आकाश जब भी ऑफिस में होता था तो अनु  दिन  में दो तीन बार उसे फोन कर लेती  थी, यां आकाश भी फुर्सत के समय अनु से फोन पर बात कर लेता था, मगर आज दोनों ही खामोश  थे।

शाम को ऑफिस  से  निकल  कर आकाश  यु ही सडकों पर घूमता रहा, घर जाने का मन  नहीं  कर  रहा  था उसका। रात करीब साढ़े नौ बजे जब आकाश घर पहुंचा तो दरवाज़ा अनु ने ही खोला, वह दरवाज़े पर नज़रें झुकाये खड़ी थी, राकेश भी अपनी नज़रें दूसरी तरफ घुमाता हुआ सीधा अंदर चला गया। अनमने ढंग से खाना खा कर दोनों ही रात को बिना कोई बातचीत किये ही सो गए।

दिन गुज़रते रहे अनु जब भी आकाश से कोई बात करने की कोशिश करती तो वह बिना उसकी तरफ देखे ही उत्तर दे देता था। दिन अब इसी तरह तन्हां तन्हां से गुज़र रहे थे और रातें बिलकुल खामोश। 
अनु का कोई भी कुसूर ना होने के बावजूद वह अपने आप को गुनहगार समझने लगी थी, वह अपने पति के रवैये से काफी परेशान थी, हादसे की इस घड़ी में उसे आकाश के प्यार, स्नेह और सहानुभूति की ज़रूरत थी, लेकिन आकाश था कि उसके  सामने देखता तक नहीं था, प्यार तो दूर की बात थी, उस दिन के बाद आकाश ने उससे ठीक से बात भी नहीं की थी। वह जानती थी कि आकाश रात को ठीक से सो नहीं पाता, वह ठीक से खाना भी नहीं खाता था। वह सब कुछ सह सकती थी मगर आकाश को इस तरह रोज़ रोज़ मरता नहीं देख सकती थी।

रात का समय था। दोनों ही बिस्तर पर लेटे हुए थे। अनु ने घूम कर देखा आकाश की पीठ थी अनु की तरफ,तभी अनु हलके से उठी, खिड़की से छन कर आ रही चांदनी की रौशनी में उसने देखा आकाश शायद सो गया था।  वह चुपके से उठी और दुसरे कमरे में गई, उसने कागज़ के ऊपर कुछ नोट्स लिखे और कागज़ को वहीँ पेपरवेट के निचे दबा कर रख दिया और बैग में अपने कपड़े रख कर कुछ लेने के लिए जैसे ही मुड़ी तो उसने आकाश को अपना लिखा वह कागज़ अपने हाथों में लिए खड़ा पाया।
"ये क्या है ? "
"मैं तुम्हें छोड़ कर जा रही हूँ "
"क्यों ?"
"मैं तुम्हें इस  तरह रोज़ रोज़ घुट घुट कर मरते नहीं देख सकती "
"मगर मैंने तो कुछ भी नहीं कहा "
"यही तो दिक्कत है कि तुमने कुछ कहा नहीं, मगर तुम्हारी ख़ामोशी बहुत कुछ बयां कर रही है। तुम्हें मुझसे शिकायत है ना, मगर मुझे यह तो बतादो कि मेरा कुसूर क्या था ?" अनु ने कहा
"मुझे शिकायत तुमसे नहीं अपने आप से है, मैं ही तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाया "
"मगर तुम्हें पता है ऐसी घडी में जब मुझे सबसे ज़्यादा तुम्हारी ज़रूरत थी , तुम्ही नहीं थे मेरे पास ?" अनु कहते कहते फ़ूट फ़ूट कर रोने लगी।
"मुझे माफ़ करदो अनु, मैं अपने ही जज़्बातों के साथ जीता रहा इस वज़ह से मेरा ध्यान ही नहीं गया तुम्हारी तरफ। तुम्हारा दर्द मैंने महसूस ही नहीं किया, मैंने सोचा ही नहीं तुमने क्या सहा ? तुमने क्या खोया है ? अनु,हम मर्द भी कितने खुदगर्ज़ होते हैं,पत्नी के साथ बलात्कार हो जाए तो हम पत्नी को ही छोड़ने को तैयार हो जाते हैं , मगर उस औरत  के बारे में कभी नहीं सोचते जिसे उस पीड़ा से गुज़रना पड़ा, मैं भी सिर्फ अपने बारे में ही सोचता रहा, क्यूंकि मैं भी तो एक आम मर्द ही हूँ, तुम्हारा तो ख़्याल भी नहीं आया मेरे दिल में,मैं तो सिर्फ यही सोचता रहा कि अब तुम मेरे लायक नहीं रह गई हो,मैंने कभी सोचा ही नहीं कया कुसूर था तुम्हारा? मैंने कभी सोचा ही नहीं कि तुम्हें कितनी पीड़ा सहनी पड़ी उस रात, कितना मुश्किल होता होगा किसी भी औरत के लिए इतने बड़े हादसे को झेल पाना और तुम्हारे दर्द की उस घड़ी  में मैंने ही तुम्हारा साथ नहीं दिया, क्यूंकि मेरी सोच भी तो एक आम मर्द जैसी ही है,अनु,हम मर्द कितना भी पढ़ लिख जाएँ, मगर सोच ? सोच तो वही रहेगी, दकियानूसी।अनु,असल में तो मैं हूँ तुम्हारा असली गुनहगार, मुझे माफ़ करदो अनु, मुझे माफ़ करदो । "

अनु आकाश के सीने से लगकर सिसक सिसक कर रोने लगी और आकाश हौले हौले से उसके सर पर हाथ फेरता रहा, अनु को लग रहा था जैसे उसकी भंवर में डोल रही कश्ती को माझी ने संभाल लिया हो। 

Romy Kapoor (Kapildev)

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