भूतों का नाम सुनते ही बच्चे तो डर जाते ही हैं, बड़ों की भी रूह कांप जाती है। बचपन ही से सभी भूतों की बड़ी ही अजीब व डरावनी कहानियां सुनते आये हैं और आगे अपने बच्चों को भी शांत करने के लिये वही कहानियां दोहराते रहे हैं, मगर, अगर कोई उनसे किसी जगह पर भूत होने के बारे में कहदे तो वह खुद भी उस जगह जाने से डरने लगते है। भूत शुरू ही से एक भयानक व डरावना चरित्र रहा है सभी के लिये।
लेकिन गांव में एक ऐसा व्यक्ति भी था जिसने आदमी की इसी कमज़ोरी और डर को अपनी जीविका का साधन बना लिया था। प्रताप नाम था उसका, क़द पांच फ़ीट, नाटा सा दिखने वाला, मगर अपने इसी छोटे कद का उसने भरपूर फायदा उठाया था। भूत नाम के इसी डर का फायदा उठाता था वह, इसी डर को उसने अपना धंधा बना लिया था और उससे होने वाली आय से उसका और उसके परिवार का गुज़ारा बड़े ही मज़े से होता था। इसीलिए रोज़ रात को वह घर से अपना बैग लेकर निकल जाता था और सुबह होने से पहले ही घर वापस लौट आता था। गाँव के लोग तो यही जानते थे कि प्रताप रात को नौकरी जाता है, वह कहां नौकरी करता है व क्या करता है ये कोई भी नहीं जानता था।
शहर से दूर शहर में आने के दो रस्ते थे, एक को चौड़ी सड़क के नाम से जाना जाता था,जहाँ से शहर में आने के लिए काफी घूम कर आना पड़ता था और दूसरी थी पतली सड़क। दोनों ही से शहर में आया जा सकता था,मगर चौड़ी सड़क से आने पर काफी घूम कर आना पड़ता था जिससे करीब १५ से २० किलोमीटर का अंतर बढ़ जाता था। इसलिए ज़्यादातर लोग शहर में जाने के लिए दिन के समय पतली सड़क का ही इस्तेमाल करते थे। मग़र रात में लोग अक्सर चौड़ी सड़क से ही शहर में जाना पसंद करते थे। क्युकी रात में जिन लोगों ने पतली सड़क का इस्तेमाल किया था उन्ही के मुंह से पुरे शहर में यह बात फ़ैल गई थी की "पतली सड़क पर रातको भूत निकलता है जो कुछ बोलता नहीं सिर्फ हाथ आगे कर देता है, अपने पास का सारा सामन व पैसा दे देने पर वह किसी से कुछ नहीं कहता और वह लोगों को जाने देता है। सर नहीं है उस भूत का।" लोग रात के सन्नाटे में अपने सामने भूत को देख कर वैसे ही घबरा जाते थे और अपना सारा सामान व पैसे छोड़ कर अपनी जान बचा कर भाग जाते थे।
इन्ही कहानियों की वज़ह से अब रात में लोगों ने पतली सड़क से जाना बंद कर दिया था। अब सिर्फ़ वही लोग रात को पतली सड़क से जाते थे जो बाहर से पहली बार इस शहर में आ रहे हैं, यां जिन्हे बहुत ही जल्दी होती थी। इसी वजह से जैसे जैसे पतली सड़क पर भूत होने की बात फैलती जा रही थी वैसे वैसे प्रताप की आय भी कम होती जा रही थी।
रात के करीब 11.30 का समय था। बारिशों का मौसम था, हल्की हल्की फुहार हो रही थी,प्रताप ने अपनी घडी की तरफ देखा,अपना बैग उठाया, बैग को अपनी साईकिल के पीछे के कर्रिएर पर बाँधा और चलदिया पतली सड़क के घने जंगलों की तरफ।
पतली सड़क के घने जंगल में पहुँच कर एक बड़े से बरगद के पेड़ के पीछे उसने अपनी साईकिल छिपा कर रख दी व बैग में से अपनी ड्रेस निकालने लगा। यह वही ड्रेस थी जिसे पहन कर वह लोगों के सामने भूत बनकर जाता था। पूरी ड्रेस एक एस्ट्रोनॉट की ड्रेस जैसी थी,फर्क सिर्फ यह था कि इसमें उसका मुंह पूरा अंदर छुप जाता था,जिसकी वजह से ऊपर का हिस्सा गर्दन बगैर का दिखता था। इसी वजह से लोग जब भी रात के अँधेरे में उसे देखते तो यही समझते कि सर बगैर का भूत आ रहा है।जिस हिस्से में उसकी आँखें थीं वहां पतला कपडा होने की वज़ह से वह आने जाने वाले वाहन व व्यकि को देख पाता था।
अब तक बारिश काफी तेज़ हो चुकी थी। रात के सन्नाटे में मेंढकों की ट्रे ट्रे की आवाज़ एक अजीब किस्म का डरावना माहोल पैदा कर रही थी। अभी उसने ड्रेस निकाल कर पहननी शुरू ही की थी कि सामने से आती हुई एक कार सन्नाटे को चीरती हुई फर्राटे से निकल गई। कार की गति इतनी तेज़ थी कि देखने से ही लगता था उसमे बैठा व्यक्ति जल्द से जल्द उस घने जंगल को पार कर लेना चाहता था। अपने सामने अपने शिकार को जाता देख प्रताप थोड़ा मायूस हो गया। उसने सोचा "आजकी रात की शुरुआत ही बड़ी ख़राब हुई ".
१५ से २० मिनट में वह अपने भूत वाले गेटअप में आ चूका था। अब वह वहीँ बरगद के पेड़ के निचे बैठ कर कान लगाकर दूरसे आने वाले किसी भी वाहन की आवाज़ सुनाई देने का इंतज़ार करने लगा।
रात काफी गहराती जा रही थी,बारिश भी काफी तेज़ हो रही थी, हवा भी काफी तेज़ चल रही थी और साथ ही मेंढकों की आवाज़ भी काफी तेज़ हो गई थी। ये सभी मिलकर माहौल को काफी भयावना बना रहे थे। तभी एक पक्षी शायद बारिश के पानी से बचने के लिए किसी सुरक्षित जगह की तलाश में उड़ा, उसके पंखों की आवाज़ प्रताप के कानों के पास से होकर गुज़र गई। एक बार तो प्रताप भी काँप गया। उसने अपनी चारों ओर नज़रें घुमा कर देखा तो उसे आज वह माहौल काफी डरावना लग रहा था। इस समय इस सियाह अँधेरी रात में उसके इलावा इस जंगल में कोई नहीं था। हर आहट पर वो चौंक जाता था। रात इतनी भयानक हो गई थी कि दूसरों को डराने वाला प्रताप आज खुद एक अजीब सा डर महसूस कर रहा था। वह सोचने लगा "वह बरसों से इस जंगल में इसी तरह अकेले रात गुज़ारता रहा है,फिर आज ऐसी क्या बात थी जो वह आज दिल ही दिल में इतना डर महसूस कर रहा है ?" तभी बादलों की ज़ोरदार गर्जना ने उसको फिर चौंका दिया। काली गहराती रात और इस घने जंगल में इस समय वह अकेला ही था, यह सोच कर इस ठन्डे मौसम में भी पसीने छूट रहे थे। आज पता नहीं क्यों उसे इस जंगल में ठहर पाना बड़ा ही मुश्किल लग रहा था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे वहां उसके इलावा भी कोई मौजूद है। वह सोचने लगा "क्यों ना आज वापस घर लौट जाए ?" अभी वह इन्हीं सोचों में डूबा हुआ था की अचानक उसके पीछे से किसीके चलने की आवाज़ ने उसे चौंका दिया। यह जूतों के चरमराने की आवाज़ थी। उसने घबरा कर तुरंत ही पीछे की तरफ देखा तो वहां कोई भी नहीं था। उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। उसने आज रात यहाँ से भाग जाने में ही बेहतरी समझी। उसने वापस घर लौट जाने का मन बनाया ही था कि तभी अचानक उसे दूर से किसी कार के आने की आवाज़ ने चौंका दिया, उसने सोचा यह एक शिकार कर के वह वापस लौट जाएगा। वह तेज़ी से चलकर सड़क के किनारे एक बड़ेसे पेड़ के पीछे छुप गया। अब हवा काफी तेज़ हो चली थी, तभी कहीं पास ही में एक पेड़ चरमरा कर गिरा , उसकी आवाज़ से प्रताप सिहर उठा।
कार की आवाज़ अब नज़दीक आती जा रही थी। कुछ ही पलों में उसे कार की हेडलाइट्स दिखाई देने लगी थी, कार काफी नज़दीक आती जा रही थी। तभी प्रताप पेड़ के पीछे से निकल कर सड़क के बीचों बीच आकर अपने दोनों हाथ चौड़े कर के खड़ा हो गया। कुछ ही दुरी पर कार की गति धीमी पड़ गई,अब धीरे धीरे सरकती वह कार उसके नज़दीक आती जा रही थी। हेडलाइट्स की रौशनी आँखों में पड़ने की वजह से वह देख नहीं पा रहा था कि कार कौन चला रहा है यां कितने लोग बैठे हुए हैं। बारिश भी काफी तेज़ थी इसलिए कार के दोनों वाइपर चल रहे थे , तभी प्रताप की कुछ दुरी पर ही कार रुक गई। बिना सर का वह आदमी, प्रताप, धीरे धीरे उस कार की तरफ बढ़ रहा था। कार के पास पहुँच कर उसने कार के अंदर झाँकने की कोशिश की जैसे ही कार के अंदर उसकी नज़र गई तो उसे लगा उसके पाँव के निचे से ज़मीन सरक रही है,आँखें फटी की फटी रह गईं। किसी जुड़ी के मरीज़ की तरह उसका पूरा बदन काँप रहा था। उसका दिल धोंकनी की तरह धड़कने लगा। कार के अंदर कोई भी नहीं था, ना कोई चालक और ना ही कोई पैसेंजर। प्रताप को लगा जैसे उसके शरीर का पूरा खून जम गया है। इससे पहले कि प्रताप कुछ सोच पाता अचानक एक हलकी सी खट की आवाज़ के साथ कार की हेडलाइट्स बंद हो गईं। प्रताप स्तब्ध सा खड़ा रह गया। तभी अचानक कार फिर स्टार्ट हुई थोड़ी आगे बढ़ी, आगे जा कर रुकी और फिर रिवर्स में आती हुई प्रताप के पास आ कर खड़ी हो गई।
प्रताप की घिग्गी बंध गई थी वो ना तो कुछ बोल पा रहा था और ना ही चिल्ला पा रहा था। उसने देखा इस घनी अँधेरी रात में वह इस खाली कार के सामने बिलकुल अकेला खड़ा था। उसने पहली बार उस डर को महसूस किया जिसको हथियार बना कर वो अपना और अपने बच्चों का पेट पालता था। प्रताप वहां से भाग जाना चाहता था, मगर उसके पाँव उठ नहीं रहे थे। वह वहीँ पर बेहोश हो कर गिर पड़ा।
पता नहीं वह कब तक यूँही बेहोश पड़ा रहा,जब उसे होश आया तब तक सुबह होने को थी,अँधेरा अभी पूरी तरह से छंटा नहीं था, बारिश रुक चुकी थी। अचानक उसे याद आया कि वह यहाँ इस हालत में क्यों था, तो उसने चौंक कर अपनी दाहिनी ओर सड़क की तरफ देखा, वहां कोई कार नहीं थी। वह तुरंत वहां से उठा और अपनी भूतों वाली ड्रेस को वहीँ छोड़ भाग खड़ा हुआ।
उस रोज़ के बाद प्रताप ने कभी भी पलट कर उस पतली सड़क की तरफ नहीं देखा।
Romy Kapoor (Kapildev)
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