Saturday, July 26, 2014

कॉफ़ी हाउस - A Short Story








हरीश अभी कॉलेज के दूसरे वर्ष में पढता था। घर में पिताजी थे जो एक सरकारी मुलाज़िम थे, मिस्टर भाटिया के नाम से ही जाने जाते थे, माँ थी जो छोटी सी प्राइमरी स्कूल में शिक्षिका थीं, राधा नाम था उनका, मगर वह भी मिसेज़ भाटिया के नाम से ही जानी जातीं थीं और एक छोटी बहन थी जो अभी १० वीं कक्षा में पढ़ती थी। छोटा सा परिवार था और हरीश के पिताजी व माँ जो भी कमाते थे उससे घर का खर्चा ठीक से चल ही जाता था। चूँकि बेटी १० वीं कक्षा में थी सो उसकी ट्यूशन वगैरा पर काफी खर्च हो जाता था। इस महंगाई में दो बच्चों को पढ़ाना और महीने भर का खर्च चलाना, महीना पूरा होते होते तो अगले महीने की तनख्वाह का इंतज़ार होने लगता था।

हरीश कॉलेज में पढता था मगर अपने दोस्तों के बीच खर्च करने के लिए  उसकी जेब में बहुत ज़्यादा पैसे नहीं होते थे।  ज़्यादातर ख़र्चा उसके अमीर दोस्त ही करते थे। कई बार  इस बात के लिए उसे मन ही मन में शर्मिंदगी महसूस होती थी, मगर वह मजबूर था।

छुट्टी का दिन था, हरीश ड्राइंग  रूम में दीवान पर लेटा टीवी पर फिल्म देख रहा था, मम्मी रसोई में शाम का खाना बनाने में लगी हुई थी और पिताजी अपने ही किसी काम में उलझे  हुए थे, व छोटी बहन अपनी किसी सहेली के यहां गई हुई थी। तभी अचानक घर का डोर बेल बजा। हरीश ने तुरंत उठ कर दरवाज़ा खोला तो सामने अपने पिताजी के ऑफिस के एक मित्र और उनकी पत्नी को खड़ा पाया।
"नमस्ते अंकल, नमस्ते आंटी आइए ना " हरीश ने शिष्टता पूर्वक दोनों का स्वागत करते हुए कहा।
"नमस्ते बेटा क्या हाल है ? कॉलेज की तुम्हारी पढाई कैसी चल रही हे ?" सूरजप्रकाश ने भी शिष्टता दिखाते हुए पूछा।
"मैं बिलकुल ठीक हूँ और पढाई भी अच्छी चल रही हे " हरीश ने जवाब   दिया।  
"पापा, मम्मी हैं घर में ?"
शायद हरीश के पिताजी ने अपने दोस्त की आवाज़ अंदर ही से सुन ली थी, सो तुरंत दरवाज़े के पास आते हुए कहा "अरे हाँ भाई आओ, आओ। अरे भाई सुनती हो देखो सूरजप्रकाश जी और भाभीजी आये हैं "
"आई" हरीश की मम्मी ने अंदर ही से आवाज़ दी।
दोनों  अंदर आकर सोफे पर बैठ गए।

हरीश के मम्मी और पिताजी घर आये मेहमानों के साथ बतियाने लग गए,  हरीश को महसूस हुआ कि वहां उसका कोई काम नहीं है तो वह उठ कर दूसरे कमरे में चला गया और  मोबाइल पर अपने किसी दोस्त के साथ बतियाने लगा।  उसे अफ़सोस ज़रूर था की उसकी फिल्म अधूरे में ही छूट गई। करीब १५ से २० मिनट के बाद हरीश की मम्मी कमरे में आई और 200 रुपये हरीश के हाथ में थमाते हुए कहा " हरीश ये लोग काफी दिनों बाद आये हैं और जब भी इनके घर जाएँ तो काफ़ी खातिरदारी करते हैं। घर में इस समय कुछ भी नहीं है जो मैं चाय के साथ उनके आगे रखूं। तुम ज़रा जल्दी जाओ और बाज़ार से कुछ गर्म समोसे व साथ में बिस्किट व अपने हिसाब से एकाद चीज़ और भी ले आना। तब तक मैं चाय का पानी चढ़ाती हूँ, ज़रा जल्दी आना। " कहती हुई वह रसोई घर की तरफ बढ़ गई। हरीश मोबाइल को रखकर बाथरूम में हाथ मुंह धोने चला गया। बाथरूम से निकल कर अभी वह कपडे चेंज कर रहा था कि उसकी मम्मी ने आते ही कहा "अरे अभी तुम यहीं खड़े हो, उधर मैने चाय का पानी भी चढ़ा दिया है। जल्दी जाओ।" हरीश तुरंत ही बाहर की तरफ भागा और अपनी बाइक को स्टार्ट करता हुआ मार्किट की तरफ चलदिया।

मार्किट में दुकान के सामने अभी अपनी बाइक को रोका ही था कि  पीछे से उसके कंधे पर किसी ने हाथ रख दिया। हरीश ने चौंक कर पीछे देखा तो ख़ुशी के मारे उसका चेहरा खिल उठा। सामने सुलेखा खड़ी थी। सुलेखा उसीके साथ कॉलेज में पढ़ती थी,दोनों में गहरी दोस्ती थी और दोनों काफ़ी देर तक कॉलेज की कैंटीन में बैठे बातें करते रहते थे।  

"सुलेखा तुम यहां ? व्हाट अ प्लीजेंट सरप्राइज ?" अपनी फटी आँखों से सुलेखा को देखते हुए हरीश बोला
"क्या बात है इतने भौचक्के क्यों हो ?" सुलेखा  ने भी चुटकी लेते हुए पूछा।
"अरे कुछ नहीं बस तुम्हे अचानक इस समय यहाँ देख कर आश्चर्य हो रहा है।" हरीश ने मुस्कुराते हुए कहा।
"क्यों भुलक्कड़, भूल गए ? मैंने तुम्हें कहा तो था कि मेरी मौसी की लड़की यहाँ से थोड़ी दूरी पर ही रहती है।  मैं उसीसे मिलने आई थी। "
"अरे तो मुझे फ़ोन तो करतीं " हरीश ने नाराज़गी जताते हुए कहा।  
"वहां से निकल कर वही तो इतनी देर से कर रही थी मगर जनाब फ़ोन ही नहीं उठा रहे" सुलेखा ने मुस्कुराते हुए कहा। तुरंत ही हरीश ने अपनी जेबें टटोलीं और मायूसी के साथ बोला "ओह शिट, मोबाइल तो घर में ही रह गया !" कुछ देर दोनों वहीँ खड़े बातें करते रहे फिर अचानक सुलेखा ने कहा "यहीं पास में ही कॉफी हाउस है, वहीँ चलकर बैठते हैं। " 
"मगर ..... ?" हरीश कुछ सोचता हुआ बोला। 
"अगर मगर कुछ नहीं चलो बाइक स्टार्ट करो।" सुलेखा ने कहा तो  हरीश ने पहले कुछ सोचा, फिर मुस्कुरा कर अपनी बाइक स्टार्ट करके सुलेखा को पीछे वाली सीट पर  बिठा कर चल पड़ा, कॉफी हाउस की तरफ। वह खुश था कि आज सुलेखा उसे मिली तो उसकी जेब में दोसौ रुपये थे। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। वह अपने आप को बहुत ही रईस समझ रहा था।  

हरीश को घर से गए आधे घंटे से भी ज़्यादा का समय हो चला था और मिसेज़ भाटिया की नज़रें बार बार बहार की तरफ उठ जातीं थीं।उन्होंने एक बार उसे मोबाइल पर भी ट्राय किया, मगर जब रिंग बजी तो पता चला जनाब मोबाइल तो घर पर ही छोड़ गए हैं। चाय का पानी खौल कर सूख चूका था, तो उन्होंने पतीली में फ़िर एकबार चाय के लिए पानी डाल दिया।  

"भाभी जी आप कुछ परेशान लग रहीं हैं ? क्या बात है सब ठीक तो है ना ?" सूरजप्रकाश ने मिसेज़ भाटिया की बेचैनी को भांपते हुए पूछा। 
"नहीं ऐसी कोई बात नहीं " मिसेज़ भाटिया ने झेंपते हुए जवाब दिया। 

वे लोग कुछ देर बातें करते रहे सूरजप्रकाश ने मिस्टर भाटिया की तरफ देखते हुए कहा  "नयी सरकार से लोगों को उम्मीदें तो बहुत हैं क्या लगता है यार, मोदीजी उन उम्मीदों पर खरे उतरेंगे ?"

वे बोले "लगता तो है, क्यूंकि सुना है उन्होंने गुजरात में काफी डेवलपमेंट किया है। मगर टाइम तो चाहिए किसी भी काम को करने के लिए। "
"वो तो सही है और वैसे भी वह खुद एक गरीब परिवार से आएं हैं तो उनकी ज़रूरतों को समझते होंगे। बचपन में चाय बेचा करते थे। "

'चाय'! चाय  से मिसेज़ भाटिया को याद आया वे भी गैस के ऊपर चाय का पानी चढ़ा कर आयीं हैं। वह तुरंत अंदर भागीं, देखा तो दुबारा चढ़ाया हुआ पानी भी सूख चूका था। उन्हें चिंता हो रही थी ऐसा क्या हो गया जो अभीतक हरीश आया नहीं। उन्होंने गैस को बंद करदिया और अंदर आकर बैठ गयीं।
"काफ़ी देर हो गई है अब हमें चलना चाहिए " सूरजप्रकाश ने कलाई पर बंधी घडी की तरफ देखते हुए कहा 
"अरे ऐसे कैसे बिना चाय पिए। अरे राधा जाओ चाय वाय ले आओ। " मिस्टर भाटिया ने कहा तो मिसेज़ भाटिया उठ कर अंदर चली गईं। कुछ ही मिनटों बाद  मिस्टर भाटिया भी उठ कर अंदर चले गए। इसी तरह बड़ी देर से चल रहा था, कभी एक अंदर जाता तो कुछ मिनटों बाद दूसरा भी उसके पीछे पीछे चला जाता फिर एक मुस्कुराता हुआ कमरे में आकर बैठ जाता तो कुछ मिनटों बाद दूसरा भी मुस्कुराते हुए आकर बैठ जाता, मगर चाय फिर भी नहीं आ रही थी। 
मिस्टर भाटिया अंदर गए ही थे कि तभी झल्ला कर सूरजप्रकाश की पत्नी ने धीरे से सूरजप्रकाश की तरफ देखते हुए गुस्से में कहा "आज आप घर चलो फिर बताती हूँ, वो जब भी आते हैं तो मेरे पीछे पड़ जाते हो ये भी रखो वो भी रखो, देख लिया एक घंटे से यहाँ तो चाय भी नहीं आ रही है। पता नहीं हो क्या रहा है एक अंदर जाता है तो दूसरा मुस्कुराते हुए उसके पीछे पीछे चला जाता है और फिर एक यहाँ आकर बैठता है तो दूसरा भी थोड़ी देर में मुस्कराते हुए आकर बैठ जाता है।  लेकिन चाय नहीं आ रही है।  तुमसे कहा था घर से चाय पी कर चलते हैं, तो कहने लगे "नहीं नहीं अपने दोस्त के वहां ही जाकर पिएंगे।" अब पियो चाय अपने दोस्त के घर की। शाम की चाय नहीं पीने की वजह से मेरा तो सर भी भारी हो गया है।" 
"अरे तुम भी ना कैसी बातें करती हो, मैं जानता हूँ उसे ऐसे थोड़े ही जाने देगा! तुम ज़रा धीरज रखो। " और सूरजप्रकाश अपनी पत्नी को शांति बनाये रखने की सलाह देने लगे।

उधर अंदर जा कर मिस्टर भाटिया ने अपनी पत्नी पर झल्लाते हुए कहा "कहाँ रह गया तुम्हारा शहज़ादा ? एक घंटा होने को है ? कुछ सोच कर फ़िर बोले " वो मै तीन चार दिन पहले सेव व शक्करपारे लाया था वो कहाँ गए ? "
"तुम्हारा लाडला जब भी टीवी पर कोई फिल्म देखने बैठता है तो कोई  न  कोई चीज़ लेकर  बैठ जाता है, मै क्या  करूँ ?" उनकी पत्नी ने कहा 
"अरे तो बेसन वगेरा  होगा उसीके पकोड़े बनालो "
" तुम्हारी बेटी ने कल ही पकोड़े बनाये थे, बेसन उसीने खत्म कर दिया है।" मिसेज़ भाटिया ने डरते हुए कहा।  
"पता नहीं तुम लोग क्या क्या बना कर खाते रहते हो मुझे तो कुछ नहीं मिलता।" झल्ला कर मिस्टर भाटिया ने कहा  "लेकिन मेरी तो नाक  कटवा दी, वो लोग क्या सोचेंगे ?"

मिस्टर भाटिया मुस्कुराते हुए आये और अंदर कमरे में बैठ गए।  कुछ ही मिनटो बाद मिसेज़ भाटिया भी मुस्कुराती हुईं अंदर कमरे में दाखिल हुईं। सूरजप्रकाश  की पत्नी  ने देखा उसके हाथ में चाय नहीं थी। उसने कनखियों से अपने पति की और देखा और फिर मिसेज़ भाटिया की तरफ देखते हुए बोली "अब हमें चलना  चाहिए काफी देर हो गयी है। " सूरजप्रकाश की पत्नी ने कहा तो सूरजप्रकाश भी समझ गए थे कि अब ज़्यादा बैठना मुमकिन नहीं  है। 

मिसेज़ भाटिया भी अब भांप चुकीं थीं कि अब और इंतज़ार करना बेकार है। उन्हें अंदर ही अंदर चिंता भी लगी  हुई थी कि कहीं कोई घटना तो नहीं हो गई और हरीश के बेफ़िकरेपन पर गुस्सा भी आ रहा था।  वह अंदर गई और प्यालों में चाय भर कर ले आई। ट्रे में सिर्फ चाय देख कर सूरजप्रकाश की पत्नी ने आँखें घुमा कर  उनकी तरफ देखा तो वह समझ गए कि वह क्या कहना चाहती है, उन्होंने तुरंत अपनी नज़रें झुकाली।   

हरीश अपनी कलाई  पर  बंधी घडी की तरफ देखते हुए सुलेखा से बोला "बड़ी देर हो गयी, तुम्हारे साथ तो वक्त का पता ही नहीं चला, अब हमें चलना चाहिए। " वेटर बिल ले आया ,बिल देने के लिए सुलेखा ने जैसे ही अपना पर्स खोलना चाहा तो हरीश ने उसका हाथ थiमते हुए कहा "आज नहीं" और हरीश ने सौ-सौ रुपये के दो नोट निकाल कर वेटर के हाथों में रख दिए। वेटर कुछ  देर  बाद लौटा और  बकाया तीस रुपये हरीश के हाथों में थमाते हुए सैल्यूट  मारा तो हरीश ने उसमें से पांच रपये का नोट वेटर को देते हुए सुलेखा के  साथ आगे  बढ़ गया। अब उसका पूरा ध्यान घर में होने वाले महाभारत पर केंद्रित था। वह जानता था कि घर पहुँच कर उसे किन परिस्थितियों  का सामना करना पड़ेगा। 
  
सूरजप्रकाश को गए करीब पौना घंटा बीत चूका था, तभी हरीश ने अपनी बाइक के साथ घर में प्रवेश किया। उसने देखा उसके मम्मी - पापा दोनों ही बाहर आँगन में बेचैनी से टहल रहे थे। उसे देखते ही हरीश के पिताजी लपक कर उसके पास आये और ज़ोर से चिल्ला कर बोले "कहाँ रह गए थे ? कोई ज़िम्मेदारी का अहसास है कि नहीं? वो लोग क्या सोचते होंगे, तुमने तो मेरा मज़ाक ही बना दिया आजतो" । 
"पापा पैसे कहीं रास्ते में गिर गए थे काफी देर ढूंढता रहा पर नहीं मिले,  सॉरी।" काफी देर उसके माता पिता उसे भला बुरा कहते रहे, मगर फिर सब कुछ शांत हो गया। 

अगले दिन सुबह हरीश अपने कॉलेज चला गया। उसकी मम्मी  ने कपडे धोने के लिए जब उसकी जेबें टटोलीं तो उसके हाथ एक बिल लगा, उसने देखा वह कॉफ़ी हाउस  का १७० रुपये का बिल था, उसके ऊपर कल की तारीख थी। वह सबकुछ  समझ गई। पहले तो उसने सोचा कि अपने पति को  बतादे मगर फिर कुछ सोच कर चुप रह गई। 
वह सोचने लगी "क्या कम जेब खर्च मिलने की वजह से बच्चे ऐसी हरकतें करते हैं कि उन्हें अपने माता पिता से भी झूठ बोलना पड़े !" वह खामोश थी मगर गहरी चिंता में डूबी हुई थी। 

Romy Kapoor (Kapildev)


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