Monday, July 14, 2014

सफ़र
















बहुत ही खुश थे हम उसदिन। हमारे यहाँ बेटा हुआ था। मैं जब अंदर कमरे में  दाखिल हुआ तो  संजना ( मेरी पत्नी ) पलंग पर लेटी हुई थी और पास में ही हमारा बेटा सोया हुआ था। मैंने  मुस्कुरा कर संजना की तरफ देखा तो उसकी आँखों में एक अजीब सी ख़ुशी थी और साथ ही गुरूर था उसके चेहरे पर, जैसे बहुत  बड़ा किला फतह कर लिया हो ! मैं अपने बेटे के पास गया और प्यार से उसका माथा चूम लिया। मैं उसे गोद में उठाना चाहता था मगर  उस नन्ही सी जान को  गोद में उठाने की हिम्मत नहीं हुई मेरी। मै प्यार से उसके कोमल गालों पर अपनी उंगलियां घुमाता रहा। नन्ही सी उँगलियों से उसने अपनी मुट्ठी बंद कर रखी थी।  मैंने  बड़े ही प्यार से उसकी बंद मुठ्ठी को खोला और अपनी पहली उँगली उसकी हथेलियों पर रख दी , उसने तुरंत ही फिर अपनी उगलिया भींच दीं और मेरी ऊँगली  को कस के पकड़ लिया। मुझे बड़ा ही गर्व सा महसूस हो रहा था, मुझे लगा जैसे वह मुझसे कह रहा हो 'पापा अब मै आपकी यह ऊँगली आपकी आखरी सांस तक नहीं छोड़ूंगा ' मेरा सीना गर्व से फूल गया था।

हमने उसका नाम रोहित रखा था। रोहित के घर में आने से हम बहुत ही खुश थे। अब हम दोनों का वक्त उसके साथ खेलने में कहां गुज़र जाता पता ही नहीं चलता था। संजना को तो जैसे कोई खिलौना मिल गया था,पूरा पूरा दिन उसीके साथ लगी रहती थी। मुझे कई बार तो ऐसा लगता जैसे रोहित के आने के बाद तो संजना ने मेरी तरफ ध्यान देना ही बंद कर दिया था। किसी चीज़ के न मिलने पर जब मैं उसे पूछता तो कह देती "वहीँ अलमारी में ही रखी होगी ज़रा ध्यान से देखलो" तो कभी सुबह ऑफिस जाने से पहले कह देती "आज टोस्ट ज़रा तुम खुद ही सेक लो मुझे रोहित तंग कर रहा है।" में उसे देखता रहता मगर अंदर से मै भी बहूत ही खुश था।

रोहित अब चलने लगा था,कई तरह की शरारतें भी करने लगा था। अब वह तुतला कर थोड़ा बहुत  बोलने की भी कोशिश करता था। वह मुझे पापा और संजना को मम्मा कह के बुलाता था। मुझे सुबह ऑफिस जाना होता यां काम से कहीं बहार जाना होता था तो मुझे तैयार होता देख वह मेरे पीछे पड़ जाता था।  बड़ी मुश्किल से संजना उसको बहला फुसला कर उसका ध्यान दूसरी तरफ करती थी, तब मै चुपके से बहार निकल पाता था।

समय इसी तरह पंख लगाये उड़ता रहा और आखिर वह दिन भी आ गया जिसका इंतज़ार हर माँ-बाप बडी ही शिद्दत से करते हैं।  आज रोहित की शादी थी।  हम दोनों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था।  घर में एक और नया सदस्य आने वाला था।  हमारी बेटी नहीं थी इसलिए एक बेटी की कमी हमें हमेशा खलती रहती थी, आज वह कमी भी पूरी होने जा रही थी।

संजना को तो जैसे नया साथी मिल गया था, वह अपनी बहु का बहुत ही ध्यान रखती थी। उसे कभी कोई काम नहीं करने देती थी।  कई बार तो मै संजना को हलके से झिड़क कर कह देता कि "इस तरह तुम अपनी बहु की आदतें बिगाड़ रही हो",लेकिन संजना हंस कर मेरी बात को टाल जाती थी।

रोहित की शादी को करीब १८ महीने बीत गए थे।  सबकुछ ठीक चल रहा था। एकदिन मैं और संजना अपने घर की लॉन में बैठे सुबह का नाश्ता कर रहे थे,तभी रोहित हमारे पास आया और पास ही पड़ी कुर्सी को खिंच कर बैठ गया।
"लो बेटा तुम भी नाश्ता करो" संजना ने नाश्ते की प्लेट रोहित की तरफ बढ़ाते हुए कहा।
"नहीं माँ मुझे भूख नहीं है अभी, मैं बाद में कर लूँगा।" कुछ देर रुक कर वह फिर बोला "मम्मी-पापा मैं आपसे एक ज़रूरी बात करना चाहता हूं।" 
"हां बोलो बेटा" मैने उसकी तरफ देखते हुए कहा।  
"पापा" उसने झिझकते हुए कहा "दरअसल मैने अपना एक नया घर बुक करवाया था।  अब वह बन कर तैयार हो गया है" 
"अरे वाह यह तो बड़ी ही अच्छी बात है, तुमने पहले क्यों नहीं बताया ?" मैने रोहित की आँखों में आँखें डालते हुए पूछा 
"पापा मैं और तृषा (रोहित की पत्नी ) अब उस नए घर में शिफ्ट होना चाहते हैं।" 
मेरा निवाला मेरे हलक में जा कर अटक गया। मुझे लगा, किसीने गरम सीसा पिघला के मेरे कानों में डाल दिया हो।मैं सोचने लगा "तृषा और मैं", यानि ? मैं कुछ देर चुप रहने के बाद फिर बोला 
"क्या तुम हमसे अलग रहना चाहते हो?" मैंने संजना की तरफ देखते हुए रोहित से पूछा था। 
"पापा हम इसी शहर में ही होंगे, और फिर रविवार के रविवार  और बीच बीच में भी आपसे मिलने आते रहेंगे" रोहित ने हमें समझाते हुए कहा। 
"बेटा अब हम बूढ़े हो गए हैं ?" संजना की आँखे भरी हुईं थीं।"और फिर यहाँ और कोई तो है नहीं, क्या तुम अपने माँ पापा से अलग होना चाहते हो ?" 
"माँ हम आपसे दूर थोड़े ही जा रहे हैं आप भी हमारे घर आते जाते रहोगे" रोहित ने अपनी माँ को समझाते हुए कहा।  
"हमारे घर?" तो क्या रोहित इस घर को अपना घर नहीं समझ रहा था ?मुझे थोड़ा अजीब सा लगा। 
"बेटा कब जाना चाहते हो ?" मैं समझ चूका था फैंसला हो चूका है, ज़्यादा बहस करने का कोई फायदा नहीं था। 
"पापा कल ही" रोहित ने कहा तो संजना ने तुरंत कहा "बेटा कुछ दिन तो और हमारे साथ"…। 
"माँ" रोहित ने संजना को बीच ही में रोकते हुए कहा "बहूत काम हैँ, कल हमें शिफ्ट करना हे" कहता हुआ रोहित उठ कर चला गया। 

हम पर जैसे कोई पहाड़ टूट पड़ा था।  मेरा दिमाग सुन्न हो गया था और संजना की आँखों से आंसू बह रहे थे।  हमारा नाश्ता वहीँ का वहीँ पड़ा रह गया।  मै किसी तरह अपने लड़खड़ाते कदमो से अंदर कमरे में आ गया, संजना भी मेरे पीछे ही थी।  हम दोनों धप्प से सोफे पर बैठ गये। संजना की हालत मै समझ पा रहा था , उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे और वह कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थी।वह दिन हमारा इसी तरह गुज़र गया, हमने कुछ भी नहीं खाया था,रोहित व तृषा अपनी ही खुशियों को संजोने में लगे हुए थे, दोनों में से कोई भी हमें देखने भी नहीं आया था।

अगलेदिन सुबह ही से घर में एक अजीब सी चहल पहल थी। रोहित अपना सामान पैक करवा कर ट्रक में रखवा रहा था। मैं और संजना चुप थे, अंदर कमरे में से सब कुछ देख रहे थे। हम अपने आप को बहुत ही लाचार महसूस कर रहे थे। यहां कोई नहीं था जो हमारे दिल का दर्द समझ सके। तभी तृषा और रोहित अंदर कमरे में दाखिल हुए, रोहित ने मेरे पाँव छूते हुए कहा "अच्छा पापा चलते हैं" 
मुझे लगा जैसे किसीने मेरे शरीर का सारा खून निचोड़ लिया हो मैंने खड़े होकर दोनों को अपने गले लगा लिया, बहुत ही रोकने के बावजूद मेरी आँखों से आंसू बह निकले। संजना को जब दोनों मिले तो रोते हुए उसने कहा  "हमारे जाने तक अगर तुम लोग हमारे साथ रह लेते ?" और वह फूट फूट कर रोने लगी।  मैं और संजना रोहित को और तृषा को बाहिर गेट तक सी ऑफ करने गए तब मैने रोहित का हाथ अपने हाथ में कस कर दबा रखा था। अचानक रोहित ने अपना हाथ मेरे हाथ से छुड़ाते हुए कहा "ओके पापा बाई" मुझे उसके जन्म के वो क्षण याद आ गए जब उसने कस के मेरी ऊँगली को अपनी नन्ही मुट्ठी में दबा रखा था।  मुझे लगा आज उसने मेरी वह ऊँगली छोड़ दी थी। मेरी आँखों में आंसू थे, मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, पता नहीं कब वह गली का मोड़ मुड़ कर आगे निकल गए थे, मगर मैं काफी देर तक उन्हें हाथ हिला कर टाटा करता रहा था। 

उस रोज़ भी हमने कुछ नहीं खाया था, मगर हमें देखनेवाला कोई नहीं था, हमें पूछनेवाला कोई नहीं था आज। इसी तरह रात हो गयी। हम दोनों एक दुसरे से कोई बात नहीं कर रहे थे, रात को हम बिस्तर पर जा कर लेट गए, संजना ने मेरी तरफ पीठ की हुई थी मगर रात के सन्नाटे में उसकी सिसकियाँ साफ़ सुन रहा था।  हम दोनों ही रो रहे थे एक आँखों से अश्क बहा रहा था तो दूसरा दिल से रो रहा था।

अगले रोज़ भी सूरज वैसे ही निकला था, चिड़ियाँ वैसे ही चहक रहीं थीं, मगर मुझे सब कुछ बदला बदला सा नज़र आ रहा था, लगा सबकुछ वैसा ही होने के बावजूद भी हम किसी नयी दुनिया में आ गए थे, जहां हम बिलकुल अकेले थे, कोई हमारे साथ नहीं था। संजना चुप थी मैं चुप था। अगर कुछ बोलरहा था तो वह थी हमारे बीच बिसरी ख़ामोशी। मैं यह सोच कर ही सिहर जाता था कि अब हमें इन्ही खामोशियों के साथ रहना था। लगता था ज़िन्दगी जैसे ठहर सी गयी है।

शुरू शुरू में तो रोहित और तृषा हर छुट्टी पर आ जाया करते थे, मगर अब वह सिलसिला भी बंद जैसा ही था। हम लोग कभी बहुत उदास होते तो उनसे मिलने चले जाया करते थे। ज़िन्दगी इसी तरह गुज़र रही थी। अब संजना से भी ज़्यादा काम नहीं होता था,कभी कभी तो हम बगैर खाना खाए ही सो जाते थे।

आज सुबह से ही मन बहुत उदास था,शाम हो चली थी, मैं अपने बोझिल मन को हल्का करने के लिए बाहर लॉन में कुर्सी बिछा कर बैठा हुआ था, पास ही रेडियो पर गाना बज रहा था जिसके बोल  मेरे कानो में पड़ रहे थे -"जाते हुए ये पल छीन क्यों जीवन लिए जाते हैं" मैं उस गाने को बड़े ही ध्यान से सुन रहा था और सोचरहा था कि "सचमुच इंसान कितना बेबस हो जाता है हालात के आगे।" तभी मुझे अंदर से कुछ गिरने की आवाज़ आई तो मैं उठ कर तेज़ी से अंदर की तरफ दौड़ा। मैंने देखा संजना नीचे फर्श पर पड़ी हुई थी और उसकी साँसे तेज़ चल रहीं थीं। मैं घबरा गया, बुढ़ापे की वजह से शरीर दुर्बल हो गया था सो मैं उसे उठा नहीं पाया तो चिल्ला कर मैंने पड़ोस में आवाज़ दी, कुछ लोग भाग कर आये और संजना को उठा कर बिस्तर पर लिटाया। किसीने तुरंत रोहित को फ़ोन करदिया था।  मैं संजना के सिरहाने बैठा उसके सर पर हाथ फेर रहा था। 
"सुनो" संजना ने धीमे से कहा "अब अकेले नहीं रहा जाता इसलिए जा  रही हूँ"  
"और मेरा नहीं सोचा ?" मैंने  कहा "मैं एकदम अकेला कैसे रहूँगा ?"  मैंने  अपनी लडखडाती आवाज़ में कहा। 
"मुझे माफ़ करदेना मैं आपका साथ नहीं निभा पायी" संजना ने अपने कांपते हाथों से मेरा हाथ थामते हुए कहाथा।  तभी रोहित ने कमरे में कदम रखा।
उसे देखते ही संजना ने कहा "तू आगया बेटे,कितना इंतज़ार करवाया तूने ?" 
"मुझे माफ़ करदो माँ" रोहित ने अपनी माँ का हाथ अपने हाथों में लेकर कहा। 
"बस देखले बेटा, अब जा रही हूँ, सिर्फ  इतना ही समय तुझे हमारे साथ रहना था", कुछ रूककर वह फिर बोली "लेकिन मेरे जाने के बाद अपने पापा को अपने साथ ले जाना, मुझसे छुप छुप कर तुझे याद कर के बहुत ही रोते रहते हैं,।" 

संजना की साँसे बड़ी तेज़ चल रहीं थीं, ऐसा लगा जैसे संजना इस दुनिया से काफी ऊब चुकी थी, डॉक्टर के आने से पहले ही संजना चली गई।  
"पापा, आपने मुझे पहले क्यों नहीं कहा?" रोहित ने रोते हुए मुझसे कहा 
"बेटा यह तो संजना ने भी मुझसे नहीं कहा था" मैंने  उसकी तरफ देखते हुए कहा 

संजना  के जाने के बाद मैं अपने आप को बहुत ही अकेला महसूस करने लगा था। मैं अकेला बैठा यही सोचता रहता कि इंसान की ज़िन्दगी कहाँ से शुरू होती है और ज़िन्दगी के इस सफर में कितने मोड़ आते हैं और कितने उतार चढाव आते हैं, जिसकी  कल्पना भी इंसान ने नहीं की होती।

संजना को गए कुछ दिन हो गए थे,एकदिन रोहित ने मुझसे कहा "पापा अब आप हमारे साथ ही रहेंगे".
मैने उसकी आँखों में देखते हुए कहा "बेटा जो तुम्हारे साथ रहना चाहती थी वह तो चली गई। तुम्हे पता है रोज़ सुबह  उठते ही मुझसे कहती थी "देखना आज रोहित जरूर आएगा" और शाम होते वह दरवाज़े पर जाकर बैठ जाती थी, घंटो  दरवाज़े  पर बैठी तुम्हारा इंतज़ार करती रहती थी और जब तुम नहीं आते तो थके मन से अंदर आ जाती थी, मगर हर आहट पर दरवाज़े की तरफ देखती, कि कहीं तुम तो नहीं आये ? काफी  देर तक मुझसे बात नहीं करती थी। कई बार तुम्हारे पसंद की कोई चीज़ बना कर रखती कहती "रोहित को यह बहुत पसंद है वो जब आएगा तो मै उसे अपने हाथों से खिलाऊँगी", जब तुम नहीं आते तो अपनी बनाई हुई चीज़ फेंक देती और कहती "रोहित जब आएगा तो उसे ताज़ी बनाके खिाऊंगी।" तुम्हे पता है वह औरत तुम्हारे कारन कितनी रातें भूखी सोयी थी ? जब रात को तुम रोते थे तो पूरी रात तुम्हे अपने सीने से लगाकर घूमती रहती थी, तुम्हे पता है उस औरत की तुम्हारे कारन कितनी रातें रोते हुए गुज़री थीं? रोहित अगर तुमने थोड़ा समय और हमारे साथ गुज़ार लिया होता तो संजना की आखरी ज़िंदगी इतनी दर्द भरी नहीं होती।
"पापा मै बहुत शर्मिंदा हूँ, अब आप हमारे साथ ही रहेंगे, प्लीज पापा।" रोहित ने मेरे पाँव पकड़ कर गिड़गिड़ाते हुए कहा।

मैं हालाँकि जाना नहीं चाहता था मगर मैं यह भी जानता था कि मेरे लिए अब अकेला रहना मुश्किल है।

जिस दिन मै उस घर को छोड़ कर जा रहा था, मेरी आँखे नम थीं, मुझे याद आ रहे थे वह दिन जब मैंने और संजना ने एक साथ उस घर में प्रवेश किया था।


रोहित मेरा हाथ पकड़ कर धीरे धीरे चल रहा था। मैं अपनी ज़िंदगी के एक नए सफर पर चल पड़ा था, लेकिन मैं अपने हर कदम को आगे बढ़ाते हुए पीछे कुछ छोड़ता जा रहा था, आँखों में आंसू थे और मन ही मन सोच रहा था :  

"ज़िंदगी के सफर में गुज़र जाते हैं जो मका
  वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते"

Romy Kapoor (kapildev)

No comments: