Thursday, September 25, 2014

पानी रे पानी



















तपतपाती और झुलसा देनेवाली गर्मी के बाद जब बारिश की फुहारें ज़मीन पर गिरती हैं तो उस तपती हुई ज़मीन को कितना सुकून, कितनी राहत मिलती होगी, यह बिलकुल वैसा होता होगा जैसे गर्मी से परेशान हो कर, घर आकर ठन्डे पानी से नहाना। उस नहाने के बाद कितनी ताज़गी मिलती है, और दिन भर की थकान मिनटों में दूर हो जाती है।  मैं समझता हूँ कि धरती को भी कुछ वैसा ही महसूस होता होगा उस बारिश की फुहारों के बाद, तभी तो धरती भी अपनी थकन मिटाते हुए फिर अपने काम में लग जाती है। नए नए पौधों को जनम देना, चारों तरफ हरियाली की चादर फैलाना, कुछ मुरझाये और कुछ सूखे पड़े पेड़ पौधों में नयी जान फूंकना। यही जीवन है और कुदरत की बनायी हुई इस साइकिल का पहिंया यूँ ही चलता रहता है और इसी लिए धरती पर रहने वाला हर जीवित प्राणी ठीक से सांस ले पाता है।

बारिश कुछ के लिए ख़ुशी का पैगाम है, आनंद का एक अवसर है , तो कईं लोगों के लिए आफ़त और कईं मुश्किलों का आगाज़।

आज हमारे शहर में भी जम कर बारिश हुई थी, बारिश की वजह से स्कूल, कॉलेजों में छट्टी दे दी गयी थी और लोग अपने ऑफिस भी नहीं जा पाये थे, बच्चे तो बड़े ही खुश थे।

लगातार हो रही बारिश के थमने के बाद जब मैंने बाहर निकल कर देखा तो चारों तरफ पानी ही पानी नज़र आ रहा था, लोग उस नज़ारे का आनंद लेने  के लिए अपने अपने घरों से बाहर निकलने लगे थे, मौसम बड़ा ही सुहावना था, हवा काफी ठंडी हो गयी थी, मैंने भी सोचा क्यूंना इस सुहावने मौसम का मज़ा लेते हुए आस पास इलाकों  का दौरा किया जाए ! यही सोच कर मैंने अपनी बाइक निकाली और चल दिया एक न्यूज़ रिपोर्टर की तरह।

बाहर मेन सड़क तक पहुंचना भी बहुत ही मुश्कि था। मैं किसी तरह अपनी बाइक को निकाल कर मेन रोड तक पहुंचा। जहां तक मेरी नज़र जाती थी वहां तक बस पानी ही पानी दिख रहा था। लोग जो सुबह से मूसलाधार बारिश की वजह से अपने अपने घरों में बैठे थे, वह सभी बाहर सड़क पर आ गए थे और सुहाने मौसम का मज़ा ले रहेथे, मित्र अपने झुण्ड में खड़े थे और ठठ्ठा मस्ती कर रहे थे, काफी लोग मेरी तरह अपना अपना वाहन लेकर घूमने निकल पड़े थे। मैं कुछ देर खड़ा होकर वह सारा नज़ारा देखता रहा, कुल मिला कर सभी मज़ा ले रहे थे खूबसूरत मौसम का और पानी का। 

मैं थोड़ा आगे बढ़ा, मैंने देखा पकोड़ों की एक दूकान पर काफी भीड़ लगी हुई थी, दुकानदार गरमा गरम पकोड़े निकालता जा रहा था और वह पकोड़े  हाथों हाथ बिकते जा रहे थे, लगा सभी इस बारिश के मौसम में गरम गरम पकोड़ों का मज़ा लेना चाह रहे थे। दुकानदार के पास नज़रें ऊपर उठा कर देखने तक का समय नहीं था।  

शाम ढलने लगी थी, मैं यूंही आगे बढ़ता रहा, जहाँ देखो वहां पानी ही पानी नज़ा आता था, बढ़ते बढ़ते मैं एक जगह पहुंचा जहां झुग्गी झोपड़ियां थीं, मैंने देखा वहां का नज़ारा बिलकुल अलग था। पानी में उनकी झोपड़ियां डूबी हुईं थीं,बर्तन पानी में तैर रहे थे, मैं अंदाज़ा लगा सकता था कि झोंपड़ी के अंदर का सारा सामान पानी में भीग गया होगा।वह सभी अपने बच्चों के साथ पास ही के एक मॉल में शर्णार्थी हो कर बैठे थे। बच्चों के कपड़े गीले थे और बच्चों के ही क्या सभी के कपड़े गीले थे।शायद उन्हें इसी तरह गीले कपड़ों में ही रहना पड़े, पता नहीं कबतक ? शाम का समय था और मैं समझ सकता हूँ कि उनके सामने सबसे बड़ा सवाल इस समय  रात के खाने का था। अगर किसीने उन्हें खाना नहीं दिया तो शायद उनके बच्चों को और उन्हें भूखा ही रहना पड़ेगा। रात को उन्हें यूँ ही इस मॉल में खुल्ले में ही सोना होगा, और अगर रात में फिर बारिश हो गई तो ? 

इतनी बारिश ने उनके लिए बाढ़ की सी स्थिति पैदा करदी थी। मेरे सामने दो मंज़र थे एक वो जहां इस मौसम का लुत्फ़ उठाने की ख़ुशी तो दूसरी तरफ इसी मौसम ने कुछ लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी थीं। कहीं पकोड़ों की दूकान पर  कतार तो कहीं खाने को तरसती आँखें ! वाकई यह तो कहना ही पड़ेगा "पानी रे पानी तेरे आने से कहीं पर ख़ुशी तो कहीं परेशानी ?"

उन लोगों को देख कर मैं यह सोचने पर मजबूर हो गया सचमुच "पैसा ज़िन्दगी में सब कुछ तो नहीं, मगर पैसे के बिना भी ज़िन्दग़ी कुछ भी नहीं।"

बारिश ने कहीं खुशियो का सा  माहौल बना दिया था तो कहीं ज़िन्दगी को मुश्किल। 

मैं डबडबाई आंखों से खड़ा सोचता रहा 

इनकी ज़िन्दगी आसान कब होगी ?

कौन करेगा इनकी ज़िन्दगी को आसान ?  

Romy Kapoor (Kapildev)

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