Thursday, January 1, 2015

तक़दीर


"मां, बाबा से कहो ना मुझे भी एक अच्छा मोबाइल फ़ोन लाकर दें, अब मैं कॉलेज में आगई हूँ और हमारी कॉलेज में सभी मोबाइल फोन लेकर आते हैं, सभी एक दुसरे से मोबाइल फ़ोन पर बातें करते हैं, मैसेज करते हैं, और अगर किसी दिन कॉलेज में नहीं आएं तो फ़ोन करके पूछ लेते हैं, अच्छी अच्छी गेम खेलते हैं।" दीपा ने अपनी माँ से कहा।
"बेटा, तुझे तो पता है तेरी कॉलेज की फीस व तेरे कॉलेज के दुसरे खर्चे, फिर घर के खर्चे, ये सब पूरा करते करते तेरे बाबा समय से पहले ही बूढ़े दिखने लगे हैं। मज़दूरी में मिलता ही कितना है ? बस किसी तरह पेट काट काट कर तुझे पढ़ा रहे हैं, तांकि जो गरीबी हमने देखि है वो तुझे ना देखनी पड़े।" दीपा की मां ने उसे समझाते हुए कहा।

दीपा मां की बात सुन कर चुप तो होगई, मगर उसकी दिली इच्छा थी कि उसके पास भी एक अच्छा सा मोबाइल फ़ोन हो, वह भी अपनी सहेलियों से मोबाइल फ़ोन पर बातें करे, फोटो खींचे।  उसने मोबाइल फ़ोन की फरमाइश एक दो बार अपने माँ बाबा से पहले भी की थी, मगर उसके बाबा ने कोई भी उत्तर नहीं दिया था।

उसके बाबा एक बिल्डिंग कांट्रेक्टर के वहां मज़दूरी करते थे। रोज़ की दोसो रुपये दहाड़ी मिलती थी, इन्ही पैसों से गुज़ारा करना पड़ता था। छोटा सा एक कमरे का मकान था, वह भी तब हुआ जब टाउन प्लानिंग के तहत कारपोरेशन ने शहर में से झुग्गी झोपड़ियां हटाने का फैंसला लिया, लेकिन उन लोगों के कड़े विरोध के बाद सरकार की तरफ से उन्हें शहर के बाहर इस तरह के मकानों का आबंटन किया गया था।

शाम को जब हरिया घर लौटा तो रात का खाना खाने के बाद जब दीपा सो गई तो हरिया की पत्नी ने कहा "आज फिर मोबाइल फ़ोन की फरमाइश कर रही थी। आप पता तो करो कितने का आता है फ़ोन ? मैंने थोड़े पैसे जोड़े हैं, यही कोई बारहसौ - तेरहसौ रुपये होंगे, इत्ते का तो आहि जायेगा ? उसे साथ लेजाकर दिलवा दो ना, सभी बच्चे ले कर आते हैं तो उसे भी इच्छा होती है। "
"अरे पागल है तू तो, बहुत महंगा आता है मोबाइल फ़ोन, इतना पैसा जमा करने में तुझे पता नहीं कितना समय लगा, और जमा करने में तो तेरी बाकी की  ज़िन्दगी ही गुज़र जायेगी। अभी पेट काट काट कर तो उसे पढ़ा रहे हैं, महंगाई भी इतनी है, क्या करें ?"
"ठीक है मैं उसे समझा दूंगी,तुम सो जाओ। " हरिया की पत्नी ने कहा और वह खुद भी लेट गई। हरिया अपने सर पर हाथ आड़ा किये लेटा हुआ किन्ही गहरी सोचों में डूबा रहा।

समय बीतता रहा, एक दिन दीपा अपनी कॉलेज में सहेलियों के साथ बैठी थी, तभी एक ने दीपा के हाथ में मोबाइल थमाते हुए कहा
"ले दीपा तु मेरी फोटो खींच ना।" दीपा को उसने कैमरा खोलकर समझाया कि कहां से क्लिक करना है और फ़ोटो कैसे खींचनी है।दीपा के हाथों में मोबाइल फ़ोन आते ही पहले तो उसे बड़ी ही हसरत से  देखा, जैसे कोई नायब चीज़ उसके हाथ लग गई हो, उसके चेहरे की ख़ुशी बता रही थी कि फ़ोन को हाथ में लेकर वह फूली नहीं समां रही थी। चार अलग अलग पोज़ खिंचवाने के बाद जब उसकी सहेली ने फोटो देखे तो वह बड़ी ही हैरानी से दीपा की तरफ देखती हुई बोली
"अरे दीपा तु तो बड़ी ही एक्सपर्ट है, क्या बढ़िया फ़ोटो खींची हैं तुने। तु भी फ़ोन क्यों नहीं ले लेति ?"
"मेरे बाबा मज़दूरी  करते हैं उनके पास इतने पैसे नहीं हैं।" बड़ी ही मायूसी के साथ दीपा ने कहा।
"अरे इस तरह मायूस क्यों होती है, तू मेरा मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल किया कर,आ अब मैं तेरी फ़ोटो खींचती हूँ। "
दीपा ने एक मुस्कुरहट दी और फ़ोटो खिंचवाने के लिए खड़ी हो गई।
"देख तो कितनी सुन्दर लग रही है !" फ़ोटो खींचने के बाद दीपा को उसकी फ़ोटो दिखाते हुए उसकी सहेली ने कहा। दीपा मोबाइल फोन में अपनी फ़ोटो देख कर बड़ी ही खुश हुई।
"ले ये फोन आज तू अपने साथ लेजा।" उसकी सहेली ने कहा तो दीपा उसे बड़ी ही अचरज से देखने लगी।  तभी उसकी सहेली ने आगे बोलते हुए कहा "आज घर जा कर अपने मां और बाबा की फ़ोटो खींचना, कल मोबाइल फ़ोन ले आना फिर हम इन सभी की तस्वीरें बनवा लेंगे किसी फोटोग्राफर के पास से।"
पहले तो दीपा ने इनकार किया मगर फिर उसकी सहेली के ज़िद्द करने पर वह मान गई।

दीपा जब घर पहुंची तो वह बड़ी ही खुश नज़र आ रही थी।  उसको इतना खुश देख कर उसकी मां ने पूछा
"क्या बात है दीपा आज इतना खुश क्यों है ?"
दीपा ने तुरंत ही अपने बैग में से मोबाइल फोन निकालते हुए कहा
"देखो मां ये मोबाइल फ़ोन। "
"अरे ये कहां से ले आई ? किसी का चोरी किया है क्या ?" माँ ने पूछा। 
"नहीं मां, मेरी एक सहेली का है। उसने मुझे कहा ये तू आज घर लेजा और अपनी मां - बाबा की फ़ोटो खिंच कर कल ले आना, तो मैं ले आई।" दीपा ने चहकते हुए कहा, उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था।
"लेकिन दीपा इस तरह इतना महंगा फोन वो भी किसी और का लेकर आना ठीक नहीं है, अगर ख़राब हो गया तो ?" उसकी मां ने चिंता जताते हुए कहा।
"मां तुम चिंता मत करो आओ मैं तुम्हारी फ़ोटो खींचती हूँ। " कहते ही दीपा ने अपनी मां की तीन चार फ़ोटो खिंच ली, रात को उसके बाबा के घर लौटने पर कुछ फ़ोटो उसके बाबा की और कुछ मां और बाबा दोनों की खींचीं।

मां और बाबा दोनों ही दीपा के चहरे पर आई ख़ुशी को देख कर बहुत ही खुश थे।
"देख रहे हो फ़ोन के साथ कितनी खुश है !"
"हां देख रहा हूँ। " हरिया ने कहा और किसी गहरी सोच में डूब गया।

दिवाली के दिन थे और ठेकेदार अपने सभी मज़दूरों को बोनस बांट रहा था। बोनस लेने के बाद हरिया ने अपनी जेब से कुछ और पैसे निकाले और उन सभी को गिनने लगा, पुरे पैसे गिनने के बाद वह अपने ठेकेदार के पास गया और बोला
"आप मेरे साथ मार्किट में चलेंगे मुझे एक अच्छा मोबाइल फ़ोन लेना है ?"
पहले तो ठेकेदार ने हरिया को ऊपर से निचे तक बड़े ही गौर से देखा फिर बोला
"मोबाइल फ़ोन ? अरे हरिया दिवाली का टाइम है जा जाके पैसे अपनी बीवी के हाथ में रख दे वो खुश हो जाएगी।" ठेकेदार ने सलाह देते हुए कहा।
लेकिन हरिया ने जब उसे अपनी बेटी की पूरी बात विस्तार से कही तो ठेकेदार ने अपने लड़के को हरिया के साथ मार्किट में भेज दिया।

कुछ सस्ता सा एंड्रॉइड फ़ोन लेकर वह बड़ी ही ख़ुशी ख़ुशी अपने घर की तरफ भागा। हांफ़ते हांफ़ते जब वह अपने घर पहुंचा तो देखा दरवाज़े पर ताला लगा हुआ है, अभी वह कुछ समझ पाता उससे पहले ही आसपास की कुछ औरतें हरिया को देख भागते हुए उसके पास आती हुई बोलीं
"अरे हरिया क्या बात है आज आने में बड़ी देर लगा दी ?"
"हां वो दीपा के लिए मोबाइल फोन लेने गया था।" कहते हुए उसने अपने हाथ वाला फ़ोन का डिब्बा सभी को दिखया।
"जल्दी जाओ तुम्हारी दीपा का तो एक्सीडेंट हो गया है, उसे पास ही के सरकारी अस्पताल में ले गए है, सर पर चोट लगी है उसके।" उनमें से एक ने कहा।
"क्या ?" हरिया के हाथ पैर कांपने लगे, उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी थी, वह तुरंत ही हॉस्पिटल की तरफ भागा। मोबाइल के डिब्बे को उसने कस कर पकड़ रखा था,तरह तरह के ख्याल आ रहे थे उसके मन में।
"अरे आगये तुम ? देखो तो हमारी बच्ची को क्या हो गया है ?" हरिया को देखते ही उसकी पत्नी ने कहा।
दीपा के सर पर पट्टी बंधी हुई थी, उसके हाथ में ग्लूकोज़ की नालियां लगी हुईं थीं और वह बेहोशी की अवस्था में बिस्तर पर पड़ी हुई थी। दीपा की ऐसी हालत देख कर हरिया की आँखें भर आईं, वह भगवान से मन ही मन उसके जल्द ठीक होने की प्रार्थना करने लगा।

फ़ोन हरिया के हाथ में ही था, दीपा के सिरहाने बैठ कर वह उसके होश में आने का इंतज़ार करने लगा।  दीपा की मां के आंसू थम नहीं रहे थे, वह भी उसके सिरहाने बैठी थी।

करीब दो घंटे बाद दीपा को हल्का सा होश आया, अपने सामने अपने माँ और बाबा को खड़ा देख कर उसके होंटो पर हलकी सी मुस्कराहट आई और फिर उसने अपनी आंखें बंद करलीं।

करीब एक घंटे बाद दीपा पूरी तरह से होश में आ चुकी थी। उसे होश में आई देख कर हरिया दीपा के सर पर हाथ घुमाते हुए प्यार से बोला "बेटा तुम ज़रा भी चिंता ना करो, तुम बिलकुल ठीक हो।" 
दीपा अपने बाबा को युही टुकुर टुकुर देखती रही। 
तब तक दीपा की मां भी अपने आंसू पोंछते हुए दीपा  के पास आ गई थी। 
"दीपा, देखो मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ ?" हरिया ने मोबाइल फ़ोन का डिब्बा निकाल कर दीपा के हाथ में रखते हुए कहा। 
मोबाइल देख कर दीपा के चेहरे पर ख़ुशी की एक लहर दौड़ गई। मोबाइल के डिब्बे को वह हाथों में लेकर उलट पलट कर देखने लगी। 
"बेटा, अब तू भी रोज़ अपनी सहेलियों से बाते करना,फोटो खींचना, मैसेज करना।" दीपा की मां ने अपनी आंख के आंसू पोंछते हुए कहा।   
"मां,आप इतना धीरे क्यों बोल रहे हो कि मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा। "
"क्या ?" हरिया ज़ोर से चिल्लाया। 
"बाबा मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा। " दीपा ने फिरसे दोहराया। 

हरिया भागा भागा डॉक्टर को बुला कर लाया। 
रूपा के सारे टेस्ट करने के बाद डॉक्टर्स ने अगले दिन हरिया और उसकी पत्नी को बुला कर कहा 
"देखिये, सर पर चोट लगने की वजह से दीपा अपनी  सुनने की शक्ति खो चुकी है, बाद में इसका एक ऑपरेशन करना होगा ,कह नहीं सकते कि वह उसके बाद सुन पाएगी। "
हरिया और उसकी पत्नी पर जैसे कोई पहाड़ आ गिरा, दोनों ही सकते में थे, कुछ भी बोला नहीं जा रहा था और आँखें फटी की फटी रह गई। 
लौट कर दीपा के पास आये, जो अभी भी हाथ में मोबाइल फ़ोन का डिब्बा पकडे हुए थी, लेकिन अब ये पता नहीं था कि वह इस फोन का इस्तेमाल कब कर पाएगी ?
हरिया की आँखों में आंसू थे और वह कुछ देख नहीं पा रहा था, सिर्फ खड़ा सोचता रहा "बेटी इतने समय से मोबाइल फोन मांग रही थी, मैं ला कर नहीं दे पा रहा था और आज जब मैं फोन लेकर आया तो वह सुनने लायक नहीं रही, भगवान यह तेरा कैसा इन्साफ है, ये उसकी तक़दीर में तूने क्या लिख दिया, अगर कोई मुसीबत देनी ही थी तो मुझे दे देता , इस बच्ची को क्यों ?"  

बाहर पटाखों की रौशनी से पूरा आकाश जगमगा रहा था, मगर हरिया को और उसकी पत्नी को लग रहा था जैसे उनकी ज़िंदगी में अँधेरा ही अँधेरा था, अपनी बेटी से छुप कर दोनों ही फूट फूट कर रो रहे थे।  

Romy Kapoor (Kapildev)

No comments: