Tuesday, November 18, 2014

Kahi-Unkahi: मुस्कान

Kahi-Unkahi: मुस्कान: सर्दियों के दिन थे , सुबह का समय था, मैं अपने बिस्तर से उठा व रोज़मर्रा की तरह भगवन को माथा टेकने के बाद अखबार की हेडलाइंस को पढ़ने लगा। क...

No comments: