Saturday, February 7, 2015

माली

"पापा मैं नौकरी करने के लिए दुबई जाना चाहता हूँ, यहां की कंपनी बंद होने के बाद मैंने बहुत जगह पर कोशिश की मगर कहीं नौकरी नही मिल रही।" प्रवीण ने रात का खाना खाने के बाद जब अपने पिता सूरजप्रकाश से कहा तो वह कुछ देर तक आँखे फाड़े उसे देखते रहे।

"दुबई ?" सूरजप्रकाश ने कुछ देर रूककर बोलना शुरू किया "बेटा, तुम्हे तो पता है एक छोटी सी परचून की दुकान है, दो वक़्त की रोटी भी बड़ी मुश्किल से निकलती है और जब से तुम्हारी नौकरी गई है तबसे तो बड़ी ही दिक्कत हो रही है, दुबई जाने का पैसा कहां से आएगा ?"


"पापा अगर मैं दो तीन साल दुबई लगा कर आ गया तो मेरी लाइफ बन जाएगी और हमारी यह पैसों की दिक्कत भी खत्म हो जाएगी। " प्रवीन ने अपने पिता को समझाते हुए कहा।


"मगर इतना पैसा आएगा कहां से ?"


"पापा आप कुछ भी करो, कहीं से उधार लेलो, मैं वहां से कमा कर आऊंगा तो आपको लौटा दूंगा तो आप उधार चुकता कर देना। " प्रवीन ने अपने पिता को समझाते हुए कहा तो सूरजप्रकाश कुछ देर युहीं शुन्य में देखते रहे फिर बोले

"लेकिन कौन देगा इतना पैसा ?"

"पापा इस मकान को गिरवी रखदो।" प्रवीन एक ही सांस में कहने के बाद अपने पिता की प्रतिक्रिया देखने लगा।


"क्या ?" फटी आँखों से सूरजप्रकाश ने प्रवीन की तरफ देखा।

"पापा, सिर्फ दो साल की तो बात है मैं वहां से इतना पैसा कमा कर लाऊंगा कि हमारा मकान तो हमारा हो ही जायेगा, हमारी सारी तकलीफें भी दूर हो जाएँगी।"

"मुझे थोड़ा समय दो सोचने का मैं सुबह तक बताऊंगा तुम्हे। मगर बहु और तुम्हारा बेटा शौर्य ?"


"पापा वह आपके साथ ही रहेंगे ताकि आपका भी मन लगा रहे।" प्रवीण ने अपने पिता के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

पूरी रात सूरजप्रकाश सो नहीं पाये।  उन्होंने बड़ी ही मुश्किलें झेल कर प्रवीन को पढ़ाया लिखाया था। पत्नी के गुज़र जाने के बाद एक उसी का सहारा था, अपने पोते शौर्य के साथ उनका समय कहां गुज़र जाता इसका उन्हें पता ही नहीं चलता।  अब एक तरफ अपने इकलौते बेटे के भविष्य का सवाल था तो दूसरी तरफ मकान ! वह निर्णय नहीं ले पा रहे थे।


सुबह नाश्ता करते हुए प्रवीन के पूछने पर सूरजप्रकाशने कहा

"ठीक है, मैं मकान को गिरवी रख कर पैसों का इंतेज़ाम करता हूँ , मगर ध्यान रहे कि यह मैं सिर्फ तुम्हारे सुनहरे भविष्य की खातिर कर रहा हूँ।" सूरजप्रकाश ने प्रवीन की तरफ देखते हुए कहा।
"पापा आप चिंता ना करें। " कहता हुआ वह अपने पिता के गले लग गया।

कुछ दिन युहीं गुज़र गए।  सूरजप्रकाश ने अपना मकान गिरवी रख दिया और उससे दो साल में सारे पैसे देकर मकान को छुड़वाने का वायदा किया। तबतक सूरजप्रकाश अपनी बहु और पोते के साथ उसी मकान में रह सकते थे। दो साल की मियाद पूरी होने पर पूरा पैसा ब्याज सहित नहीं लौटा पाने पर उन्हें वह मकान खाली करना होगा, इन्ही शर्तों पर उन्होंने अपना मकान गिरवी रख दिया था। 


"प्रवीन, तुम्हारी मां इसी माकन में  पहली बार जब आई थी तब वह बहुत ही खुश थी, उसने अपनी पूरी ज़िन्दगी यहां बिताई और दम भी इसी माकन में तोडा। मैं चाहता हूँ कि जिस घर के साथ तुम्हारी मां की इतनी यादें जुडी हुईं हैं, मेरा दम भी उसी घर में निकले। मैं चाहता तो नहीं था इस माकन को गिरवी रखना मगर तुम्हारे सुनहरे भविष्य की खातिर मैंने यह कदम उठाया है , इसलिए कि तुम खूब पैसा कमा कर आओ। " सूरजप्रकाश ने प्रवीन के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

"पापा आप चिंता नहीं करो मैं आपको निराश नहीं करूँगा।" प्रवीन ने पिता को विश्वास दिलाते हुए कहा।


प्रवीण की पत्नी सरोज भी बहुत खुश थी, मगर उसे इस बात का भी ग़म था कि उसे इतना लम्बा समय अपने पति से दूर रहना होगा।

"उदास क्यों होती है ? मैं तेरे लिए बहुत पैसे कमा कर लाऊंगा और फिर तुझे रानी बना कर रखूँगा।" प्रवीण ने अपनी पत्नी के चेहरे की उदासी को देखते हुए कहा। "तुम्हारे पास तो शौर्य भी होगा, तुम्हारा मन लगा रहेगा, मैं तो वहां अकेला ही होऊंगा, अगर तुम इस तरह मायूस होगी तो मेरा जाना मुश्किल होगा, इसलिए मुस्कुराओ और मुझे अच्छी सी चाय बना कर पिलाओ।"

नन्हा शौर्य पास ही खेल रहा था, सारी बातों से अनजान, ना किसी के आने का पता न किसीके जाने का।


आखिर वह दिन भी आ गया, आज प्रवीन दुबई जा रहा था। परिवार के इलावा उसके कई दोस्त भी एयरपोर्ट पर बिदा करने आये थे, प्रवीन ने अपने बेटे शौर्य को गोद में उठा रखा था, उसकी पत्नी उसकी बगल में खड़ी थी, आँखें भरी हुईं व चेहरे पर उदासी, पास ही सूरजप्रकाश भी खड़े थे।


अनाउंसमेंट होने पर प्रवीन अपने पिता के पांव छूते हुए बोला

"पापा मैं आपका यह एहसान ज़िंदगी भर नहीं भूलूंगा, मैं बहुत जल्दी  ही आपका क़र्ज़ उतार दूंगा। 

"सूरजप्रकाश ने अपने बेटे को गले लगा लिया, गला भरा होने की वजह से वह कुछ बोल नहीं पाये।


"सरोज अपने ये आंसू पोंछ लो, दो साल  तो बस  युहीं गुज़र जायेंगे, शौर्य का ध्यान रखना।" सरोज के पास आते हुए प्रवीन ने कहा। 

प्रवीण चला गया।

सूरजप्रकाश अपनी बहु और पोते के साथ घर वापस आकर यु ही गुमसुम से बैठ गए।


"बहु प्रवीन के जाने के बाद घर कितना सूना सूना लग रहा है ?" फिर कुछ देर युही शुन्य में देखते रहने के बाद बोले "बिलकुल शौर्य जितना था, जब भी मैं दुकान जाने के लिए निकलता तो रोने लगता, कहता मुझे भी साथ जाना है, बड़ी मुश्किल से उसकी मां उसका ध्यान दूसरी तरफ लगाती तब कहीं जा कर मैं निकल पाता था। 


कई बार तो उसकी मां को इतना तंग करता कि वह उसे दुकान पर ही ले आती, दुकान पर कभी चॉकलेट, कभी बिस्कुट तो कभी बुढ़िया के बाल, बड़ी ही मस्ती करता था, मेरी तो जान था, पता ही नहीं चला वो कब बड़ा हो गया, इतना बड़ा हो गया कि अकेला दुबई भी चला गया !" सूरजप्रकाश ने अपनी भीगी आँखों को पोंछते हुए कहा।

सरोज भी उदास थी, शौर्य पास ही में सोया हुआ था।



समय बीतता रहा, प्रवीन को दुबई गए पूरा एक वर्ष बीत गया था, पहले तो वह रोज़ ही फोन करता था मगर वह सिलसिला धीरे धीरे कम होता गया और अब तो महीने में एकाध बार उसका फोन आ जाता था, उसने कुछ महीने पैसे भी भेजे मगर अब वह भी भेजने बंद हो गए थे। सूरजप्रकाश को अपनी छोटी सी दुकान से तीन लोगो का खर्च चलाना भी मुश्किल हो गया था।  कई बार उन्हें किसी न किसी से थोड़ा बहुत उधार भी लेना पड़ता था। वह इस बात से परेशान तो थे ही।

इसी तरह दो साल बीत गए, आखिर वो दिन भी आ गया जब प्रवीन घर वापस आ रहा था। सूरजप्रकाश, सरोज व शौर्य को लेकर एयरपोर्ट पहुँच गए थे।


"सरोज। …पापा ! प्रवीन एयरपोर्ट से  बाहर  निकलते  हुए अपनी पत्नी और पिता को देखते ही दूर से ही चिल्लाया।

सूरजप्रकाश अपने बेटे को देख कर बहुत ही खुश थे।  पास पहुंचते ही उन्होंने अपने बेटे को गले लगा लिया।  शौर्य को देख कर परवीन ने उसे गोदी  में उठाते हुए कहा "अरे शौर्य कितना बड़ा हो गया ?"

सूरजप्रकाश देखकर बहुत ही खुश थे, उन्हें लग रहा था जैसे प्रवीन के आने के साथ उनका अधूरा परिवार फिर पूरा हो गया था, कमी थी तो सिर्फ उनकी पत्नी की।


प्रवीन को वापस लौटे पूरा एक हफ्ता बीत गया था, सूरजप्रकाश रोज़ इसी उम्मीद में रहते कि शायद आज प्रवीन पैसों के बारे में उनसे कोई बात करेगा, मगर अभीतक उसने कोई भी बात नहीं की थी। एक रात सूरज प्रकाश ने खुद ही बात छेड़ते हुए प्रवीन से पूछा

"बेटा वो पैसे कब लौटाओगे ? अब तो एक दो दिन में देनदार भी पैसे मांगने आ जायेगा, और पैसे नहीं देने पर तो घर खाली करना पद सकता है।"

प्रवीण ने अपनी पत्नी को देखा, कुछ देर चुप रहने के बाद बोला

"ठीक है पापा दो तीन दिनों में मैं इसका कोई रास्ता निकालता हूँ।" कहता हुआ वह दूसरे कमरे में चला गया, सरोज भी उठ कर उसके पीछे पीछे चलदी।

बात वहीं ख़त्म हो गई, सूरजप्रकाश के चेहरे पर चिंता के भाव साफ नज़र आ रहे थे, किन्ही गहरी सोचों में डूबे वह कब सो गए पता ही नहीं चला मगर प्रवीन और उसकी पत्नी रात देर तक ना जाने क्या खुसुर फुसुर करते रहे।


दो दिन बाद सूरजप्रकाश रात का खाना खा कर बैठे थे कि प्रवीन ने कहा

"पापा हम कल सुबह बाहर जा रहे हैं, आप अपना बैग तैयार कर लेना, कपडे व अन्य ज़रूरी सामान रख लेना।"
"मगर बेटा हम जा कहां रहे रहे हैं ?" सूरजप्रकाश ने पूछा।
"पापा पैसों का इन्तज़ाम करना है ना, जल्दी ही आ जायेंगे।" प्रवीण बोला।

"पैसों का इन्तज़ाम ? मैं कुछ समझा नहीं। "

"पापा मैं आप को सब समझा दूंगा, आप बस सुबह तैयार हो जाना। "
"ठीक है मगर जाना कितने बजे है ?" सूरजप्रकाश ने पूछा तो उनकी आवाज़ में एक छिपा हुआ भय भी था।
"बस यही कोई १०-११ बजे। "
सूरजप्रकाश सो गए।

सुबह उठते ही सूरजप्रकाश ने अपना बैग तैयार कर लिया।नहा धोकर नाश्ता करके बैठे ही थे कि प्रवीन ने पूछा

"पापा आप तैयार हैं ? चलें ?"
"हाँ तैयार तो हूँ मगर हम जा कहां रहे हैं और कितने दिन के लिए जा रहे हैं?"
"पापा क्या आप को मुझ पर भरोसा नहीं है ?"
"बेटा इस बुढ़ापे में तुम्हारे भरोसे ही तो जी रहा हूँ,  मगर शौर्य से तो मिला नहीं, वह तो स्कुल गया हुआ है।"
"उसे तो आने में अभी काफ़ी टाइम है, हम लेट हो जायेंगे।" प्रवीन बोला और उठ कर ऑटो लेने चल दिया।  
ऑटो में बैठते हुए जब सरोज ने अपने ससुर के पाँव छुए तो उन्होंने ढेर सारा आशीर्वाद देते हुए कहा
"बेटा सदा खुश रहो, बहुत सारा सुख मिले तुम्हे, शौर्य भी पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बने और बहुत साड़ी खुशियाँ  दे तुम लोगों को, शौय से कहना मैं आते हुए उसके लिए बहुत सारी चॉकलेट लाऊंगा,उसे ढेर सारा प्यार देना मेरी तरफ से।" कहते हुए उनकी आँखों से आंसू बाह निकले।
अॉटो चल पड़ा, सूरजप्रकाश मुड़ मुड़ कर काफी दूर तक पीछे देखते रहे।

करीब चालीस मिनट बाद ऑटो एक स्थान पर रुका, यह शहर से दूर एक जगह थी। ऑटो से उतर कर बड़ी ही उत्सुकता से सूरजप्रकाश चारों तरफ देखते रहे, चारों तरफ खेतों के बीच में एक कोठी नुमा मकान था। मकान के अंदर दाखिल होते ही प्रवीन ने एक बेंच की तरफ इशारा करते हुए कहा "पापा आप यहाँ बैठिये मैं अभी आता हूँ।" कहता हुआ वह सीढियाँ से ऊपर की तरफ चला गया।


सूरजप्रकाश यह सब बड़े ही अचरज से देख रहे थे। सामने लॉन  में चार पांच बूढ़े पुरुष व दो महिलाये बैठे बातें कर रहे थे। वह भी बड़ी ही उत्सुकता से सूरजप्रकाश की तरफ देख रहे थे।


करीब दस मिनट बाद प्रवीन आया और सूरजप्रकाश का बैग उठाते हुए बोला "आइये पापा " पहली मंज़िल पर जा कर एक कमरे में एक बेड के ऊपर उनका बैग रखते हुए बोला "बैठिये।"सूरजप्रकाश ने नज़रें घुमा कर देखा, वहां करीब दस बेड लगे हुए थे, वहां बाकी के नौ पर कुछ न कुछ सामान रखा हुआ था, पांच बेड पर कुछ बूढ़े आदमी सोये हुए थे।

"बेटा यह क्या है ?" प्रवीन की तरफ नज़रें घुमा कर देखते हुए उन्होंने पूछा।


"पापा वो.........."
"नहीं बोल पा रहे हो ?" दरवाज़े से अंदर प्रवेश करते हुए एक व्यक्ति जिसकी उम्र करीब चालीस के आस पास की रही होगी, ने प्रवीन की तरफ देखते हुए पूछा। फिर वह सूरजप्रकाश की तरफ मुखातिब होता हुआ बोला "मेरा नाम देवेन्द्र पारीख है, मैं यहाँ का ट्रस्टी हूँ, यह "ओल्ड ऐज होम" है, लोग यहाँ अपने बूढ़े मां बाप को छोड़ जाते हैं।"
"ओल्ड ऐज होम ?" बड़े ही अचरज से सूरजप्रकाश ने प्रवीन की तरफ देखते हुए कहा "बेटा यहां क्यों लाये हो मुझे ?"

"पापा थोड़े दिनों में मकान का इन्तज़ाम हो जायेगा तो मैं आपको यहां से ले जाऊंगा।" प्रवीण ने सर झुकाये हुए ही उत्तर दिया।


"मकान का इंतज़ाम ? मतलब ? तुम तो मुझे पैसे देने वाले थे ? उस मकान को गिरवी रख कर मैंने तुम्हे परदेश भेजा था, तब तुमने मुझे कहा था कि तुम वापस लौटते ही मुझे  पैसे लौटा दोगे और वह मकान छुड़वा लोगे।"


"पापा मैंने आपसे कहा ना मैं जल्द ही आपको यहां से लेजाऊँगा।" प्रवीन नज़रें नहीं मिला पा रहा था।

"बेटा मैंने तुम्हे पाल पोस कर बड़ा किया, तुम्हे परदेश भेजा ताकि तुम्हारा भविष्य बन जाए और तुम मुझे यहां ले आये ?" सूरजप्रकाश का गला भर आया, वह कुछ बोल नहीं पा रहे थे, आँखों से आंसू छलक आये।

देवेन्द्र पारीख ने उनके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा

"आप धीरज रखिये, यहां हमारी तरफ से आपको कोई तकलीफ नहीं होगी, आपके अपने तो यहां नहीं होंगे मगर यहां सभी एक दूसरे के साथ बड़े ही स्नेह से रहते हैं।" कुछ देर रुक कर वह फिर बोला "हमारे मम्मी पापा ने हमें पाल पोस कर बड़ा किया था लेकिन जब हमारी बारी आई उनकी सेवा करने की तब वह इस दुनिया से चले गए थे। दोनों का एक कार एक्सीडेंट में निधन हो गया था, तभी से हम दोनों भाइयों ने यह ओल्ड ऐज होम खोल दिया और अब आप जैसे बेसहारा लोगों की सेवा कर के हमारे मन को बड़ा ही सुकून मिलता है।"
प्रवीन चुप था नज़रें झुकी हुईं थीं।

सूरजप्रकाश ने प्रवीण की तरफ देखते हुए कहा

"बेटा मैं तुम्हारे घर का सारा काम करदूंगा, झाड़ू, बर्तन, पोंछा , सब कुछ, मैं तुमसे पैसे भी नहीं मांगूगा, मगर मुझे परिवार से अलग मत करो, मुझे शौर्य से दूर मत करो, अभी तो मैंने शौर्य को ठीक से खिलाया भी नहीं। " सूरजप्रकाश ने हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए प्रवीण से कहा।

"पापा आप समझते क्यों नहीं ?" प्रवीण ने झल्लाते हुए कहा। मैंने आपसे एक बार कहा तो है कि मैं आपको जल्द ही यहां से ले जाऊँगा।" 


अपने सारे प्रयासों के बाद भी जब प्रवीन नहीं माना तो सूरजप्रकाश अपने घुटने टेक दिए।  अपनी आँखों के आंसू पोंछते हुए अपनी जेब में हाथ डाला और सौ रुपये का एक नोट निकाल कर प्रवीन के हाथ में थमाते हुए बोले 

"ठीक है बेटा, ये लो सौ रपये, मैं शौर्य को तो मिला नहीं था, उसके लिए कुछ चॉक्लेट्स ले जाना, वो खुश हो जायेगा, अब मैं तो जा नहीं रहा तो तुम ही मेरी तरफ से शौर्य के लिए चॉक्लेट ले जाना, वो बहुत खुश हो जायेगा, मेरी तरफ से ढेर सारा प्यार देना उसे, ध्यान रखना उसका। " कहते हुए सूरजप्रकाश की आँखें भर आईं। 
"पापा मैं ले जाऊंगा, इसे आप अपने पास ही रखिये आपको ज़रूरत पड़ेगी। "

"मुझे अब इसकी क्या ज़रूरत ? यहां से खाना मिल ही जायेगा। "

अपने हाथ में सौ का नोट लेते हुए प्रवीन बोला "अच्छा पापा अब चलता हूँ। "


"बेटा शाम को घर जल्दी आ जाया करना, शौर्य और बहु घर पर पूरा दिन अकेले रहेंगे, अपना ध्यान रखना और काम काज में ध्यान लगाना, भगवन तुझे बड़ी तरक्की दे।" अपनी आँखों को पोंछते हुए फिर बोले "बेटा अगर तुमने घर पर ही बोल दिया होता तो तुम्हारी मां की फ़ोटो ही ले आता अकेले बैठे उसीसे बातें कर लेता।" कहते कहते उनकी आँखों से आंसू टपकने लगे। 

प्रवीण ने एक बार उनकी तरफ देखा और पलट कर सीढियाँ उतरने लगा। सूरजप्रकाश भी घबराये से उसके पीछे भागे। प्रवीण बिना रुके ही मुख्य द्वार से बाहर निकल गया। सूरजप्रकाश मुख्य द्वार पर ही रुक गए, शायद अब यही उनकी सीमा बन गयी थी, प्रवीन को जाता देख भर्राई आवाज़ में ज़ोर से चिल्लाये "शौर्य को लेकर आना एक बार मिलवाने के लिए।"



उनकी आंखें आंसुओं से भरी पड़ी थीं, दिल चाह  रहा था कि दहाड़ें मार मार के रोएँ, दूर जाते प्रवीन की तस्वीर भी अब धुंधली सी दिखाई दे रही थी।  बेबस से वहीँ बैठ गए, घुटनों के ऊपर अपना सर रख दिया और सिसक सिसक कर रोते रहे, न जाने कब तक ?

प्रवीन के बचपन की यादें उनके ज़हन में घूम रही थीं, जब वह उसे दुकान भी नहीं जाने देता था, वही आज उन्हें खुद यहां छोड़ गया।  
एक माली जिसने सींच कर एक पौधे को बड़ा किया, आज माली अकेला खड़ा था, ना उस पेड़ की छाया थी और ना ही उसका सहारा। 
जिस बेटे के सुन्दर भविष्य के लिए उन्होंने अपने घर को गिरवी रख दिया, वही बेटा उन्हें घर से बे घर कर गया !  

क्यों होता है ऐसा ? 

क्यों ओल्ड ऐज होम की संख्या इतनी बढ़ती जा रही है ? 
क्यों आजकल के बच्चे अपने मां बाप को पाल नहीं सकते, उन्हें जिन मां बाप ने उन्हें पाल पोस कर इतना बड़ा किया ?
क्यों एक माली, जिसने एक बाग़ को इतने सालों सींचा, उसे ही अपने बाग़ से बाहर निकाल दिया जाता है ?
क्या इसका कारन सोशियल सिक्योरिटी का ना होना हो सकता है ?

क्या ये मुद्दा सरकार के लिए एक चेतावनी नहीं है ?


Romy Kapoor (Kapildev)






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