Saturday, November 15, 2014

मुस्कान


सर्दियों के दिन थे , सुबह का समय था, मैं अपने बिस्तर से उठा व रोज़मर्रा की तरह भगवन को माथा टेकने के बाद अखबार की हेडलाइंस को पढ़ने लगा। कुछ भी इंटरेस्टिंग नहीं लगने से मैं अखबार के पन्ने पलटने लगा। अख़बार की ख़बरों में कुछ भी  नया नहीं था, वही आतंकवाद की ख़बरें और राजनितिक पार्टियों का एक दूसरे पर हमला। स्पोर्ट्स की ख़बरें पढ़ने के बाद जब मैं अखबार को लपेट कर रख रहा था कि मेरी नज़र एक छोटी सी हैडलाइन पर थम गई, लिखा था "सर्दी की वजह से देश के अलग अलग जगहों पर कुल १२ लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी।" मैंने पूरी  खबर को एक ही सांस में पढ़ा।

मैं सोचने लगा मौसम चाहे कोई भी हो गर्मी, बारिश यां सर्दियाँ मरना तो गरीब को ही पड़ता है।

कितने अफ़सोस की बात है कि आज़ादी के इतने सालों  के बाद भी हमारी सरकारें इन गरीबों को रहने के लिए एक माकन और तन ढकने के लिए कपड़े यां सर्दी से बचने के लिए एक कम्बल तक मुहईय्या नहीं करवा पाई, गरीबी की वजह से हमारे देश में न जाने कितने बच्चों को अपने माँ बाप और न जाने कितने माँ बाप को अपने बच्चे गवाने पड़ते हैं। यह सिलसिला न जाने कितने सालों से चला आ रहा है और न जाने आनेवाले कितने सालों तक चलता रहेगा। कब ऐसी कोई सरकार आएगी जिसका ध्यान इन गरीबों की तरफ भी जाएगा ?

मैं बुझे मन से अख़बार को वहीँ रख कर उठ खड़ा हुआ। चूँकि रविवार का दिन था इसलिए मैं अपने सारे कार्य आराम से कर रहा था। मगर न जाने क्यों मन अंदर से काफी उदास व बुझा बुझा सा लग रहा था।

नहा धो कर पूजा करने के बाद मैं टीवी के सामने बैठ कर कोई प्रोग्राम देखने लगा, मगर मन पता नहीं क्यों वहां भी नहीं लग रहा था। मैं समझ नहीं पा रहा था कि मन इतना उदास सा क्यों है ?

जब भी मैं अपने आप को डल या उदासीन महसूस करता हूँ तो मैं अक्सर कोई पुस्तक निकाल कर पढ़ने लगता हूँ। मैंने आज भी वही किया,एक पुस्तक निकाली और अपने आप को उसमें डुबो दिया।

दोपहर का खाना खा कर मैं सो गया।
शाम को जब नींद खुली तो महसूस किया कि ठण्ड काफी बढ़ गई है। मैंने अपने सामने अपनी पत्नी को बैठी पाया, जो शायद मेरी नींद खुलने का इंतज़ार कर रही थी। उसने एक शाल ओढ़ रखी थी, मैं उसे इसी शाल को पिछली पांच छे सर्दियों से ओढ़ते हुए देख रहा था। मैं कुछ पल उसे देखता रहा, फिर मन ही मन में सोचा क्यों ना आज पत्नी को एक सरप्राइज दिया जाए ? उसे आज एक नया शाल ला कर दूँ ! मैं उठा, स्वेटर पहना और पत्नी से यह कर कि "मैं अभी थोड़ी देर में आता हूँ", चल दिया उसके लिए एक शाल खरीदने।

एक अच्छा सा शाल खरीदकर उसे अच्छी तरह से पैक करवा कर मैं वापस घर की तरफ चल दिया।  मन ही मन मैं सोच रहा था कि शाल को देख कर पत्नी कितनी खुश हो जाएगी। 

मैं आधे रास्ते ही पहुंचा था कि सामने का दृश्य देख कर मेरा पाँव अनायास ही बाइक की ब्रेक पर ज़ोर से पड़ा, बाइक को रोक कर मैं अपने सामने के उस दृश्य को देखता रहा।  वहां फुटपाथ पर एक शायद आठ वर्ष का लड़का  और शायद दस वर्ष की लड़की एक दूसरे के कंधे पर हाथ रख कर चिपक कर बैठे हुए थे। उनके कपडे पुराने व कई जगह से फटे  हुए थे। शायद अधिक सर्दी की वजह से वे दोनों एक दूसरे के साथ सट कर बैठे थे। 

मैं कुछ देर यूंही खड़ा उन्हें देखता रहा, फिर मैंने अपनी बाइक को सड़क किनारे खड़ी की और हाथ में दबे पैकेट, जिसमे अभी खरीदी हुई शाल थी,लिए उनकी तरफ बढ़ गया। 
मैं उनके पास पहुंचा और पूछा "क्या नाम है तुम्हारा ?"
लड़का उत्तर देने की  बजाय उस लड़की को देख कर मुस्कुराने लगा। मैंने फिर अपना सवाल दोहराया तो उस लड़की ने उत्तर दिया 
"मेरा नाम शीला है और इसका  नाम चुन्नू , ये मेरा भाई है। "
"क्या तुम्हे सर्दी लग रही है ?" मैंने अगला सवाल पूछा 
"हां साब, पर हमारे पास और कपड़े नहीं हैं। " लड़की ने बड़े ही भोलेपन से उत्तर दिया। 

मैं कुछ देर यूंही खड़ा उनकी तरफ देखता रहा, फिर अपने हाथ वाले पैकेट को देखा, उसे खोल कर उसमें से शाल निकाल कर उससे उनको ढक दिया। 
दोनों ने खिंच कर शाल लपेट लिया, उनकी टाँगे सिमट गईं और चेहरे पर मुस्कराहट आ गई। 

उनकी उस मुस्कराहट ने मेरे मन की उस दिन भर की उदासी को खत्म कर दिया। वह दोनों शाल ओढ़ने के बाद मुझे ऐसे देख रहे थे जैसे मन ही मन शुक्रिया अदा कर रहे हों। 

मैं उनकी उस मुस्कान को दिल में छुपाये अपनी बाइक की तरफ मुड़ा और वापस अपने घर की तरफ चल दिया। मैं अपने आप को बड़ा ही हल्का सा महसूस कर रहा था। 

मुझे पहली बार महसूस हुआ कि किसी ज़रूरतमंद की ज़रूरत को पूरा कर  के और उनके चेहरे पर मुस्कराहट ला कर मन को कितना सुकून, कितनी शांति मिलती है ! दोनों की उस मुस्कराहट ने मेरे दिन भर की उस उदासी व बोझिलपन को खत्म कर दिया था। मैं भी मुस्कुरा रहा था। 

इन्ही सब में जब मैं घर पहुंचा तो पत्नी को दरवाज़े पर इंतज़ार में खड़ी पाया। मुझे देखते ही तुरंत बोली "कहाँ चले गए थे ? मैं कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूँ ?"

मैं कुछ भी नहीं बोला सिर्फ मुस्कुराता रहा और ख़ुशी में अपनी पत्नी को अपनी बाहों में उठा लिया।  

Romy Kapoor (Kapildev)

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