Wednesday, August 26, 2015

हादसा



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"निशान बेटा तुम क्या कर रहे हो ?" माँ ने अंदर के कमरे से आवाज़ लगाते हुए पूछा ।
"माँ मैं बूट पोलिश कर रहा हूँ " निशान ने अपनी मा को उत्तर देते हुए कहा।
निशान एम बी ए कर रहा था , पिता एक प्राइवेट कंपनी में जनरल मैनेजर थे, माँ स्कूल में शिक्षिका थीं व छोटी बहन बी.एस. सी. के प्रथम  वर्ष में पढ़ रही थी।
अपने मोहल्ले में खन्ना परिवार एक प्रतिष्ठित परिवार के रूप में जाना जाता था। जब भी किसी को कोई सलाह लेनी होती तो वह खन्ना साहब के पास ज़रूर आता था।
"माँ आज मेरे दोस्त का जन्मदिन है, इसलिए हम सभी दोस्त पहले तो आज मूवी देखने जायेंगे और फिर उसके बाद रात का खाना उसीके घर है। " निशान ने कमरे में आते हुए अपनी माँ से कहा।
कौनसे दोस्त का जन्मदिन है ? माँ ने पूछा  
"संदीप का " निशान ने उत्तर देते हुए कहा "माँ मैंने एक पैंट रखी है उसे ज़रा ठीक से प्रेस कर देना, मैं अपने दोस्त साहिल के घर जा रहा हूँ दोपहर को आऊंगा और फिर खाना खाके जाऊंगा। "
"ठीक है मैं मैं प्रेस कर दूंगी" माँ ने उत्तर दिया।
निशान चला गया।
आरती खन्ना अपने काम में व्यस्त हो गयी , तभी उनकी बेटी डिम्पी ने नहा कर बाथरूम से बहार आते हुए अपनी माँ से पूछा "माँ आप चाय पियोगे मैं अपने लिए बनाने लगी हूँ ?"
"हां आधा कप ले लुंगी "
"पापा कहां हैं ?" डिम्पी ने अपने गीले बालों को झटकते हुए पूछा।
"वो सब्ज़ी लेने गए हैं आते ही होंगे। "
"और भाई ?"
वो साहिल के घर गया है दोपहर को आएगा। "
डिम्पी रसोई में चाय बनाने चली गयी, आरती ने प्रेस निकाल कर गर्म करने को रख दी।
निशान की पैंट उन्होंने प्रेस करके रखी ही थी कि डिम्पी रसोई से चाय बना कर ले आई। दोनों चाय पिने बैठे ही थे कि खन्ना साहब भी सब्ज़ी लेकर आ गए।
पापा को देखते ही डिम्पी ने पूछा "पापा आप चाय लेंगे ?"
"नहीं आप लोग पियो " अपने हाथ के थैले को एक तरफ टेबल पर रखते हुए वहीँ सोफे पर बैठ गए।
कुछ देर कमरे में सिर्फ चाय की चुस्कियों की ही आवाज़ आती रही।
"डिम्पी ज़रा टीवी चालू कर के न्यूज़ तो लगा दे। " खन्ना साहब ने कहा।
डिम्पी ने टीवी तो चालू किया मगर न्यूज़ की जगह मूवी लगा दी।
खन्ना साहब ने हलके से गुस्से वाले तेवर बनाते हुए अपनी बेटी की तरफ देखा , डिम्पी ने भी उस गुस्से को महसूस किया मगर वह इसी तरह चैनल को पलटती रही।
कुछ देर तो खन्ना साहब बर्दाश्त करते रहे मगर फिर वह उठ कर जाने लगे तो डिम्पी ने कहा "पापा.. बैठो मैं तो मज़ाक कर रही थी" कहती हुई मुस्करा कर न्यूज़ लगादी।
खन्ना साहब फिर सोफे पर धप्प से बैठ गए।
"अभी अभी खबर मिली है कि शहर के कई इलाकों में एक के बाद एक थोड़े थोड़े अंतराल पर बम धमाके हुए हैं , इन धमाकों में कई लोगों की जान जाने का अंदेशा जताया जा रहा है। हम आपको पूरी खबर विस्तार से कुछ ही पलों में दिखाएंगे। "
अचानक टीवी पर आई इस 'ब्रेकिंग न्यूज़' से आरती खन्ना के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं।
"सुनो निशान भी बाहर गया हुआ है, आप ज़रा निशान को फ़ोन तो लगाओ।" आरती ने अपने पति की तरफ देखते हुए कहा।
"अरे तुमतो ऐसे ही चिंता करती रहती हो , हमारे निशान को क्या होगा ?"
"आप फोन तो लगाओ " आरती ने फिर कहा।
अपना सर झटकते हुए खन्ना साहब ने निशान को फोन लगाया, कुछ देर रिंग बजती रही मगर फिर बंद हो गई।
"अभी फोन उठा नहीं रहा है, मस्त होगा अपने दोस्तों में। " खन्ना साहब ने कहा।
मगर आरती के चेहरे पर चिंता के भाव साफ़ देखे जा सकते थे। डिम्पी ने अपनी माँ की तरफ देखा और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर हलके से दबाते हुए कहा "माँ चिंता मत करो भाई अभी आ जायेगा। "
तीनों की नज़रें टीवी पर टिकी हुईं थीं। अब सभी न्यूज़ चैनल पर यही खबर दिखाई जा रही थी। टीवी पर जिस तरह की तस्वीरें दिखाई जा रहीं थीं उन्हें देख कर तो किसी का भी दिल दहल जाये।
"आप साहिल को फोन लगाओ उसी के घर तो गया था निशान " आरती ने फिर अपने पति से कहा।
खन्ना साहब ने साहिल को फोन लगाया, उसके फोन की रिंग भी बज कर बंद हो गई।
"वो भी फोन नहीं उठा रहा, दोनों घूम रहे होंगे कहीं, एक बार दोस्तों के साथ घूमने  निकले तो फिर घर की चिंता किसे रहती है ? " खन्ना साहब ने थोड़ा झुंझलाते हुए कहा।
"आप खुद जाइये ना साहिल के घर पता लगाने। " आरती ने कहा।
"अरे पागल हो गई हो ? अभी आ जायेगा निशान। "
न्यूज़ चल रही थी व उस पर धमाकों से हुए नुक्सान के चित्र दिखाए जा रहे थे, मगर मरने वालों के बारे में कोई भी पुख्ता समाचार किसी न्यूज़ चैनल ने नहीं दिया था।  पुलिस ने पूरे एरिया को कॉर्डन कर रखा था।  चारों तरफ भाग दौड़ मची हुई थी।
करीब एक घंटा बीत गया था मगर न तो निशान से और ना ही साहिल से कोई बात हो पा  रही थी।
"डिम्पी रोटी तो बना भूख लग रही है " खन्ना साहब ने अपनी बेटी की तरफ देखते हुए कहा।
"अरे आप एक बार फिरसे फोन तो लगाओ " आरती ने कहा तो खन्ना साहब ने फिर से फोन लगाया मगर फिर रिंग बज कर बंद हो गई।
"बड़ा ही लापरवाह लड़का है। बस दोस्तों के साथ हो तो घर की सुध ही नहीं रहती। " झल्लाते हुए खन्ना साहब ने कहा।
डिम्पी खाना बनाने लग गई।
"मम्मी भाई की रोटी भी बना कर रख दूँ ?" रसोई में ही से डिम्पी ने पूछा।
"हाँ बनादे कह कर तो गया था खाना घर पर ही आकर खायेगा। "
खन्ना साहब के आगे टेबल पर डिम्पी ने खाना ला कर रख दिया।
अभी उन्होंने पहला निवाला तोडा ही था कि फोन की घंटी बजी।
"लो तुम्हारे बेटे का ही फोन होगा। " खन्ना साहब ने बिना फोन की तरफ देखे ही कहा।
सुनते ही आरती भाग कर अपने पति के पास आते हुए बोली "पूछो कहाँ है , जल्दी से घर आने को कहो। "
खन्ना साहब ने हाथ का इशारा कर के सब्र रखने को कहा और खुद फोन कान से लगाते  हुए बोले "अरे निशान बेटा कहाँ हो तुम ? तुम्हे पता तो है शहर में कितने बम धमाके हुए हैं, तुम्हारी माँ कितनी चिंता कर रही है ?" एक ही सांस में बोल गए खन्ना साहब।
"क्या ये फोन आपके बेटे का है ?" सामने से आवाज़ आई।
"हाँ मगर... आप.... कौन ?" रुक रुक कर घबराई सी आवाज़ में उन्होंने पूछा।
"ये फोन यहाँ कार के नीचे पड़ा था मैंने इसकी रिंग की आवाज़ सुन कर इसे उठाया और आपको फोन किया। " सामने से आवाज़ आई "मैं यहाँ बम धमाके वाली जगह से इंस्पेक्टर पाटिल बोल रहा हूँ , मैं आपसे रिक्वेस्ट करता हूँ कि आप जल्दी ही यहाँ पहुंचे, यहाँ बम धमाकों में मारे गए लोगों की लाशें पड़ी हुईं हैं , मैं ये नहीं कहता कि आपका बेटा भी....... मगर फिर भी आप एक बार यहाँ आ कर देख लेंगे तो तस्सल्ली हो जाएगी।"

खन्ना साहब के हाथ कांपने लगे, साँसे फूल गई, आँखे फटी की फटी रह गई, फोन हाथ में से सरक कर नीचे गिर गया।
"अरे क्या हुआ ? आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे ?" आरती ने चिल्लाते हुए पूछा।
खन्ना साहब कुछ बोल नहीं पाये सिर्फ उनके होंट फड़फड़ा कर रह गए।
"अरे मैं पूछती हूँ किसका फोन था ? कुछ बोलते क्यों नहीं ?" आरती ने अपने पति को झंझोड़ते हुए कहा।
"पुलिस इंस्पेक्टर का फोन था, उन्होंने बुलाया है। " अपनी लडखडाती आवाज़ में खन्ना साहब ने कहा।
"क्या " आरती के भी हाथ पाँव फूल गए, वो वहीँ पर धप्प से बैठ गई।
खन्ना साहब जिस पोजीशन में बैठे थे वैसे ही उठते हुए कांपते हाथों से अपनी पत्नी के कंधे का सहारा लेकर खड़े होते हुए बोले "कुछ नहीं हुआ है.... कुछ नहीं होगा, हमारे बेटे को कुछ नहीं हो सकता, तुम चिंता मत करो मैं अभी अपने बेटे को लेकर आता हूँ..... चिंता मत करो तुम..... अभी आता हूँ मैं। " खन्ना साहब की आवाज़ कांप रही थी, दिल ज़ोरों से धड़क रहा था।
"नहीं मैं भी चलूंगी आपके साथ। "
"हाँ हाँ चलो। "
दोनों ही दरवाज़े की तरफ भागे। डिम्पी भी बड़ी चिंतित सी दिख रही थी व उसने रोटी बनानी भी बंद करदी थी। वह मन ही मन अपने भाई के लिए प्रार्थना कर रही थी।
घटना स्थल पर पहुँच कर उन्होंने देखा हालात काफी ख़राब थे आदमी, औरतों और बच्चों की लाशें पड़ी हुईं थीं। पुलिस ने पूरे एरिया को अपने कब्ज़े में कर लिया था व वह अपनी कार्रवाही कर रहे थे। 
भागे भागे खन्ना साहब इंस्पेक्टर पाटिल के पास गए। इंस्पेक्टर पाटिल  ने उन्हें देखा और उन्हें थोड़ी दुरी पर लेजाते हुए कहा "हमें यहां ये मोबाइल मिला, आप हिम्मत रख कर बड़े ही ध्यान से देखिये। "
खन्ना साहब व उनकी पत्नी बड़े ही मज़बूत मन से एक एक बॉडी को बड़े ही ध्यान से देख रहे थे। उन्होंने कभी सोचा न था कि उनको अपने बेटे को इस तरह से ढूंढना पड़ेगा। 
"ये रहा हमारा निशान " एक बॉडी को देखते ही आरती ज़ोर से चीखी। 
उसकी चीख सुनकर खन्ना साहब ज़ोर से चिल्लाये "पागल मत बनो, ध्यान से देखो"   
मगर उन्हें सच का सामना तो करना ही था। कुछ देर की छान  बिन के बाद ये पता चल गया कि वह निशान ही था। 
खन्ना साहब व उनकी पत्नी का मानो  पूरा खून किसीने निचोड़ लिया हो, दोनों ही दहाड़ें मार मार कर रो रहे थे। 
बड़ी मुश्किल से अपने आप को सँभालते हुए खन्ना साहब ने इंस्पेक्टर पाटिल से कहा "मैं हमेशा यही समझता रहा कि हादसे तो  सिर्फ दूसरों के साथ ही होते हैं, मैं यह भूल गया कि हादसे तो किसी के भी साथ हो सकते हैं। "
पोस्टमार्टम के बाद उन्हें बॉडी दे दी गई। 
खन्ना साहब इस हादसे में अपना सब कुछ गवां चुके थे। 

वह तो सिर्फ यही कहते रहे "यह बम चलाने वाले दूसरों के ही बच्चों को क्यों मारते हैं, क्यों वह एक बम अपनी बीवी और बच्चों पर नहीं फेंकते हैं, तभी उन्हें अपनों को खोने के दर्द का एहसास होगा और फिर शायद वह कभी भी किन्ही निर्दोष लोगों को इस तरह नहीं मारेंगे " 

Romy Kapoor




  

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