Tuesday, March 17, 2015

ख्वाहिशें


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हसरतों की चादर में लिपटी इन ख्वाहिशों को जब भी कभी खोल कर देखने की कोशिश करता हूँ तो सहम जाता हूँ , सोचता हूँ क्या ये ख्वाहिशें कभी पूरी होंगी ? जो ज़िन्दगी से मुझे मिला वह तो कई नायाब तोहफे हैं, मगर फिर भी एक कसक सी क्यों है मेरे दिल में उन ख्वाहिशों को ले कर ? 

सुना है ख्वाहिशें कभी मरती नहीं, उन्हें तो मारना पड़ता है, क़त्ल करना पड़ता है उनका। तो क्या मैंने भी क़त्ल कर दिया अपनी ख्वाहिशों का ? मगर जब ख्वाहिशों को मार  दिया जाता है तो दिल में एक कसक सी रह जाती है, अफ़सोस सा होता है, क्यूं कि ज़िन्दगी एक लम्बा सफर होता है और उस लम्बे सफर को बिताने के लिए भी कुछ ऐसी ख्वाहिशों का पूरा होना बहुत ज़रूरी होता है जिनके सपने हम युवा होते ही देखना शुरू कर देते हैं। 

मुझे लगता है कि उसी युवा अवस्था में देखे गए कुछ सपने ही आगे चल कर ख्वाहिशें बन जाती हैं। 

मगर मैं तो अब उन ख्वाहिशों को हसरतों की चादर में लपेट चूका हूँ, जिसे खोल कर देखने से भी मैं सहम जाता हूं।  

Romy Kapoor (Kapildev)