Sunday, June 22, 2014

अमर रहे तेरा प्यार

जब मै  उसे अपने घर लाया था, बहोत ही छोटा था वो, शायद एक महीने का रहा होगा।  छोटा सा बच्चा था। अभी तो वो ठीक से चल भी नहीं पाता था। वो जर्मन शेफर्ड ब्रीड थी। जीहां जर्मन शेफर्ड डॉग की ही बात कर रहा हूँ। मुझे बचपन ही से शौक था डॉग पालनेका का, डॉग से बेहद  लगाव था।मै समझता हूँ कि डॉग से बढ़ कर कोई वफादार नहीं हो सकता और न ही इतना प्यार कोई कर सकता हे। मै समझता  हूँ कि वफ़ादारी और निस्वार्थः प्यार हमें डॉग से सीखना  चाहिए।

जब हम  उसे घर लाये तो काफ़ी नाम सोचे मगर अंत में हमारी पसंद 'शेरू' पर आकर ठहर गयी। एक छोटे से बच्चे को पलना बहुत ही मुश्किल काम था।  एक तो वह अपनी माँ से और अपने बहिन भाईओं से बिछड़ कर आया था।  रात भर वो कु…कु  करता रहा और अपनी माँ को ढूंढता रहा, उसके मुह के पास हाथ ले जाने पर वह  इस तरह जीभ फेरता था जैसे माँ का दूध  पीने की कोशिश कर रहा हो। रात भर मै यां मेरी पत्नी उसे गोद में लेकर प्यार करते रहे । हम उसे चम्मच से व निप्पल वाली बोतल से दूध पिलाते थे।  एक दो तो दिन  वह थोड़ा उदास सा रहा मगर फिर वह शायद ये समझने  लगा था कि अब यही उसका घर है, और यहीं उसको रहना है, अब यही उसके अपने हैं। में तब सोचता था "कितना मुश्किल होता होगा बचपन ही में माँ  से और अपने बहन भाइयो से बिछड़ना और उनको भुलाना ?" वो बेचारा बे ज़ुबान जानवर तो ये भी नहीं जानता था कि अब वो कभी भी अपनी माँ और बहन भाइयों को नहीं मिल पायेगा। लेकिन कहते हैं न कि वक़्त हर ज़ख्म को भुला देता है, शेरू भी अब अपनी पुरानी ज़िंदगी को भूल कर अपनी नयी ज़िंदगी में आहिस्ता आहिस्त प्रवेश कर चूका था।वह अब थोड़ा दौड़ने लगा था और खेलता  भी था।  मै उसे इस  तरह खेलता देख मन ही मन में काफी खुश होता था, उस ख़ुशी को बयान करना बहुत ही मुश्किल है , वह बिलकुल वैसी ही थी जैसी अपने जन्मे बच्चे को चलता और खेलता देख कर एक माँ को होती होगी। मेरा शाम का और सुबह का समय अब उसी में गुज़र जाता था।  उसे खिलाना पिलाना और उसके साथ खेलना। घर के सभी सदस्य बहुत खुश थे।समय गुज़रता रहा।  शेरू अब बड़ा हो गया था। कोई  भी अनजान व्यक्ति को  घर में घुसने नहीं देता था वो, और अब तो सभी ये जान चुके थे कि इस घर में डॉग है, लोग आने से पहले ही कह देते थे कि डॉग को बांध दो।  वैसे भी जर्मन शेफर्ड बड़ी ही खूंखार ब्रीड मानी जाती है। वह बहोत ही चुस्त और तंदुरुस्त था।  समय समय पर उसका वेसिनेशन व ज़रूरी दवाइयाँ उसे देते रहते थे।

समय बीतता चला गया और शेरू अब करीब दो साल का हो गया था। अचानक उसका पेट फूला- फूला सा रहने लगा और उसने खाना भी कम कर दिया था।  शुरू में तो मैं समझ नहीं पाया, जब वह कुछ खाता नहीं था, तो मेरा दिल दुखता था और मैं उसे हल्का सा डांटता था या हल्का सा थप्पड़ भी मारता था ,ताकि वह कुछ खा ले मगर वो नहीं खता था।यही  तो बेज़ुबान जानवर की सबसे बड़ी तकलीफ  है कि वह कुछ भी बयां नहीं कर पाते। उसे अच्छे डॉक्टरों को दिखाया, डॉक्टरों का कहना था कि उसके पेट में पानी भर गया है। अच्छी से अच्छी ट्रीटमेंट करवाई मगर उसके पेट में पानी भरने की तकलीफ कम नहीं हो रही थी।  वह अब काफी  बीमार रहने लगा था।  यहाँ तक कि उसका चलना फिरना भी बंद हो गया। मैं मन ही मन रोता था, मगर कुछ भी कर नहीं पा रहा था।  अब मैं भगवन से एक ही प्रार्थना करता था कि "हे भगवन किसी तरह शेरू को अच्छा कर दो" वह काफी बीमार था यहाँ तक कि डॉक्टर ने कह दिया कि अब आप लोग इसकी सेवा कर लीजिये। बयां नहीं कर पाउंगा जो मेरा हाल था। लेकित कहते हैं न कि साँसे उतनी ही लेनी हैं जितनी लिखी हुई हैं।  शेरू के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। पता नहीं क्या चमत्कार हुआ और शेरू फिर खड़ा हो गया और अब वह चलने फिरने भी लगा था। मै बहोत ही खुश था।

दिन गुज़रते रहे एक दिन मेरी पत्नी ने मुझे सुबह सुबह उठाते हुए कहा  "देखो शेरू को क्या हुआ हे वो उठ नहीं रहा" मैं ऐसे उठा जैसे सोया ही नहीं था।  तुरंत बाहर गार्डन एरिया में जाकर देखा तो शेरू लेटा  हुआ था उसका मुह मेरी तरफ था और आँखे मुझे देख रही थीं। उसकी साँसे बहुत ही तेज़ चल रहीं थीं, मैं तुरंत उसके पास गया और प्यार से उसके सर पर हाथ घुमाते हुए उसकी आँखों में देखा, मुझे  नहीं पता मै कैसे बयां करू , मेरे पास शब्द नहीं ,मुझे  देख कर उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे।  वो बेज़ुबान जैसे कुछ कहना चाहता था शायद ये की "मैं अभी तुम लोगों को छोड़ कर नहीं जाना चाहता।" मगर कह नहीं पा रहा था।  इसीलिए उसकी आँखे नम हो गईं थीं। मैंने तुरंत अपने  लड़के को बुलाया और शेरू को  उठा कर अंदर कमरे में लाये।मैंने अपने लड़के को  तुरंत डॉक्टर को फ़ोन करने को कहा।

शेरू को जब अंदर ला कर लिटाया तब मैं उसके पास ही बैठ गया।  उसके सर पर  हल्का हल्का हाथ घुमाता रहा, मेरी भी ऑंखें नम हो गईं थीं। मुझसे शेरू की ऐसी हालत देखी नहीं जा रही थी। मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था कि अचानक क्या हो गया ? तभी  पता नहीं शेरू में कहाँ से शक्ति आ गयी, उसने गर्दन उठाई और सामने की तरफ रखे मंदिर की तरफ एक से दो मिनट तक देखता रहा और...... उसकी साँसे बंद  हो गयी.।मेरे सामने मेरा शेरू दम तोड़ रहा था और मैं कुछ भी कर नहीं पा रहा था।  मेरी आँखे आंसुओ से भर गयी, मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। मैंने तुरंत अपने बेटे को बुलाया पत्नी को बुलाया और उनसे कहा "देखो इसकी साँसे चल रही हैं ?"

मगर नहीं। ....... वह चला गया ...  हम सब को, इस दुनिया को छोड़ कर।
मैं आज भी अकेला बैठा इस रहस्य के बारे में सोचता रहता हूँ कि 'रात को पता नहीं कब उसकी तबियत अचानक ख़राब हुई ? क्या वो आखरी बार मुझे और घर के अन्य  सदस्यों को देखने के लिए सुबह तक साँसे लेता रहा ? जाते जाते  उसने भगवन के मंदिर की तरफ देख कर क्या कहा ?

कभी भी भुला नहीं पाउँगा मैं उसका प्यार। जब मैं उसके पार्थिव शरीर को घर से ले जा रहा था तब आँखे नम थीं ,वह आखरी बार हमारे घर से बिदा हो रहा था, ये उसकी आखरी बिदाई थी। दिल बस यही कह रहा था " ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना " उसको  अपनी कार की पीछे की सीट पर लिटाया ,शेरू अपने आखरी सफर पर चल पड़ा था । कार मेरा लड़का चला रहा था। मुझे आगे का कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था सिर्फ  मुझे याद आ रहे थे वो दिन जब वह रात को उठ कर बेड़ रूम में आता था और हमें सोया देख कर चला जाता था। सुबह मेरे पलंग के पास आ कर बैठ जाता था और इंतज़ार करता था मेरे उठने का, मेरे उठते ही सबसे पहले वह मुझे मिलता था। उसकी ज़िन्दगी का हर एक पल मेरी आँखों के सामने रील की तरह चल रहा था ।
उसे दफ़न करते हुए मैने मिटटी डाली तो मुझे लगा मैं कैसे रह पाउँगा शेरू के बिन ? उसे आखरी नमस्कार करते हुए मेरा दिल रो रहा था और मैं दिल ही दिल में कह रहा था

"बस आखरी सुनले ये मेल हे अपना, अब खत्म है साथी ये खेल है अपना ,
अब याद में तेरी बीत जायेंगे रो रो के , जीवन के दिन चार. .
नफरत की दुनिया को छोड़ कर प्यार की दुनिया में ,खुश रेहना मेरे यार
"अमर रहे तेरा प्यार "

This is my tribute to my loving Dog

Kapildev Kohhli 

Friday, June 6, 2014

How Long....?


It was in the month of December. I was sitting on a bench on Jallandhar City Railway platform, waiting for a train to Amritsar. Cool breeze were blowing. Most of the people had wore  sweaters or Jackets to protect them selves.

Suddenly I saw a laborer family...Husband and Wife... with their two small kids. The mother had embraced younger child and the elder child had very tightly hold the finger of his father. He was slowly walking with him. They sat on the platform, just in front of me. I was watching them. They had wore old cloths and an old dust sheet was muffled by the parents. Children were also less protected in their old sweaters. It had some holes and some patches. I could clearly see the difference between the rich family's children and those who were in front of me.

The wife then told something to her husband, he suddenly got up and gone to a near by stall to bring a bottle of flavored milk for their children. He then gave half milk in a glass to his wife for their younger child and half of the bottled milk he gave to his elder child. The elder child was little willful , so when his father was giving him the milk bottle , he stubbornly hit his hand to the bottle and the milk split on the railway platform. When the father saw this, he slapped on the face of the child and the child started weeping.

I then thought what was the fault of that child ? He born in a poor family that was his fault ? Why those kind of children can not celebrate festivals like rich people's children ? Why they just have to make them selves happy by seeing others to celebrate ? Why they can't eat sweets or good food ? Why they have to find their food from the garbage thrown by rich people ?

I just leave a question for all - what was the cost of that bottle ? Rs. 10/- or Rs. 15/- ? But that day I realize the importance of  that money for a poor. When those hard earned money is wasted, it pinches to the heart of a poor. How long this situation will remain like this ?


Romy Kapoor (Kapildev)